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तलहट्टी पर स्थित कोठी मंदिर
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सम्मेत शिखर और शत्रुजय भारतवर्ष के सम्पूर्ण जैन तीर्थों में प्रमुख है। पश्चिमी भारत के शिखर पर शत्रुजय तीर्थ है और पूर्वी भारत में सम्मेत शिखर । किसी एक तीर्थंकर के, किसी एक कल्याणक से जब कोई भूमि तीर्थ बन जाया करती है, तब उस तीर्थ की पावनता
और शक्ति का आकलन करना तो मानव बुद्धि के लिए असम्भव होगा, जहां बीस-बीस तीर्थंकरों ने निर्वाण की अखण्ड ज्योति जलाई हो । यद्यपि निर्वाण की पहली ज्योति अष्टापद (हिमालय) में जली थी, लेकिन आज हमारे लिए वह तीर्थ अदृश्य है । ऐसी स्थिति में सम्मेत शिखर वह तीर्थ हैं, जिसे हम निर्वाण की आदि ज्योति का शिखर कह सकते हैं। सच तो यह है कि निर्वाण की सर्वोच्च ज्योति ही सम्मेत शिखर है।
जैन-धर्म के चौबीस तीर्थंकरों में अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्दनप्रभु, सुमतिनाथ, पद्मप्रभु, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभु, सुविधिनाथ, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रत स्वामी, नमिनाथ एवं पार्श्वनाथ-इन बीस तीर्थंकरों ने इसी महान पर्वत पर जीवन की सांध्यवेला पूर्ण की एवं परमपद मोक्ष प्राप्त किया। हर तीर्थंकर ने अपनी आभा से इस स्थान की घनत्व शक्ति को सचेतन करने के प्रयत्न किये और परिणामत: लाखों वर्षों से यह स्थान स्पन्दित, जाग्रत और अभिसिंचित होता रहा है। सचमुच, सम्मेत शिखर अद्भुत, अनूठा, जाग्रत पुण्य-क्षेत्र है।
सम्मेत शिखर का वायुमंडल आज भी एक पवित्रता लिये है। इस पर्वत की यह अपनी विशेषता है कि यह अपने पर स्थित विशाल चंदन वन के सुगंधित वृक्षों से सदा महकता रहता है। कई दुर्लभ वनौषधियां इस पर्वत पर होती हैं। पर्वत पर बहते शीतल झरनों का कल-कल निनाद हमारे हृदय को आनंदित करता है।
सम्मेत शिखर का सर्वाधिक प्राचीन उल्लेख ज्ञाताधर्म कथा नामक आगम के मल्लिजिन अध्ययन में हुआ है। वहां तीर्थंकर मल्लिनाथ के निर्वाण का वर्णन करते हए इस पर्वत के लिए दो शब्दों का प्रयोग किया गया है- 'सम्मेय पव्वए' और 'समेय सेल सिहरे'।
कल्पसूत्र के पार्श्वनाथ चरित्र में तीर्थंकर पार्श्व के निर्वाण का वर्णन करते हुए सम्मेत शिखर के लिए सम्मेय सेल सिहरंमि' शब्द अभिहित है।
मध्यकालीन साहित्य में सम्मेत शिखर के लिए समिदिगिरी या समाधिगिरि नाम भी प्राप्त होता है। स्थानीय जनता इस पर्वत को
अनुत्तरयोगी भगवान पार्श्वनाथ : कोठी मंदिर के मूलनायक
पार्श्वनाथ ढूंक में प्रभु के पावन चरण
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