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________________ धातु की प्रतिमायें हैं । यहाॅ अर्थात् इस प्रान्त में सभी जगह अधिकांश मूर्तियां समवसरण युक्त एवं प्रभामण्डल सहित | विशाल मानस्तम्भ है । मन्दिर की व्यवस्था अच्छी है। यहाॅ पद्मावती देवी चमत्कारयुक्त है । लोग इसकी मनौति करते है । इसके नाम से शुक्रवार के दिन एकासन करते हैं। आसपास के लोग आकर पूजा आदि करते हैं। यहाॅ के तालाब पर आचार्य गुणसागर के चरणद्वय विराजमान है । नूतन वर्षारंभ के दिन इसकी पूजा होती है । | एलमंगलं : - यह विलुक्कं के पास का गाँव है । यहाँ एक जिनमन्दिर है। जैनों के १० घर है । धर्म के प्रति जागरुकता कम है । धर्म प्रचार की बड़ी आवश्यकता है । अगलूर :- यह चित्तामूर से ८ कि.मी. पर है। यहाॅ आदिनाथ भगवान् का जिनालय है । इसका जीर्णोद्धार हुआ है । व्यवस्था अच्छी है । मन्दिर के सामने मानस्तम्भ है । एक सभा मण्डप है । क्षेत्रपाल का मन्दिर है । धातु की बहुत सी प्रतिमायें है । यक्ष-यक्षियों की मूर्तियाँ भी है । शास्त्र भण्डार है । यहाँ ४० जैनों के घर है । इस गाँव में विद्वान् लोग ज्यादा रहे। इस गॉव से दो भट्टारक हुए है I अत्तिपाक्कं :- यहाँ दो जिनमन्दिर है। एक अनंतनाथ भगवान् का है दूसरा महावीर भगवान् है । अनन्तनाथ भगवान् के मन्दिर में कई धातु की मूर्तियां है । पाषाण की ५ मूर्तियां है । एक चॉदी की मूर्ति भी है। शासन देवताओं की मूर्तियां हैं। यह प्राचीन मन्दिर है। श्रावकों में संगठन का अस्तित्व कम है। जिसके कारण मन्दिर की व्यवस्था ठीक नहीं है। श्रावकों के ३० घर है । लोगों में धर्म की रुचि साधारण है । धर्म प्रचार की आवश्यकता है । का नेमेली :- यह अत्तिपाक्कं से एक किलोमीटर पर है। यहाॅ नूतन जिनमन्दिर बन रहा है 1 मूलनायक नेमिनाथ भगवान् है । कई धातु की प्रतिमायें हैं। शासन देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं । यह २००० वर्ष प्राचीन मन्दिर है । यहाँ श्रावकों के ३० घर है 1 वीडूर :- यहाँ आदिनाथ स्वामी का जिनालय है । यह १५०० वर्ष प्राचीन है । इस गॉव में श्रावकों के करीब ५० घर है । इस मन्दिर में १५० ताडपत्र की प्रतियाँ हैं । ये सब संस्कृत और प्राकृत में हैं। यहाॅ करीब ६० से ज्यादा जिन प्रतिमायें हैं। यह गाँव तिण्डिवनं से २५ कि.मी. पर है। अक्षय तृतीया और दशहरे के समय उत्सव मनाये जाते हैं। अभिषेक पूजारी ही करता है। तमिल प्रान्त में ऐसी ही हालत है | श्रावक-श्राविकायें भगवान् के दर्शन करने आते हैं। खुद अभिषेक करने की आदत कम है । यहाॅ चार-पाँच साल के पहले पंचकल्याणक प्रतिष्ठा हुई थी। यहाॅ के महानुभाव हुम्बुचं के भट्टारक रहे । उन्हीं के द्वारा ताडपत्र की प्रतियां तैयार की गई है। उन में अच्छे-अच्छे शास्त्र होंगे। खोजकर देखने की जरूरत है । महासभा का अनुदान रहा है । 1 Jain Education International 76 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003645
Book TitleTamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2001
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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