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मोक्ष प्राप्त करने के लिये जैन धर्म और हिन्दू धर्म दोनों का विचार क्या है ? इसके बारे में सबसे पहले जानना जरूरी है।
जैन धर्म :- इनके अरिहन्त, परमात्मा राग-द्वेष से मुक्त है। उनकी जो भक्ति करते हैं या नहीं करते हैं, दोनों की अवस्था एक अपेक्षा से बराबर है। वे भगवान् न देते हैं और न लेते हैं । परन्तु उन्होंने मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग बताया है। प्रत्येक व्यक्ति उनके बताये गये मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है । गृहस्थी में रहने वाले स्त्री-पुरुष दोनों पुण्य कार्य करेंगे तो स्वर्ग मिल सकता है, मोक्ष नहीं । मोक्ष प्राप्त करने के लिए दिगम्बर मुनि का धर्म ग्रहण करना पड़ेगा । मुनिधर्म में तप कर कों को नाश करना है । तभी मोक्ष मिल सकता है । कितना कठिन है ! इसका मतलब यह है कि गृहस्थ धर्म से मोक्ष नहीं बल्कि मुनि धर्म से ही मोक्ष मिल सकता है। मोक्ष प्राप्त करना हो तो सदाचार (आचरण) की बड़ी जरूरत है । सदाचार के बिना कदापि मोक्ष नहीं मिल सकता । सदाचार रूपी तप से ही मोक्ष मिलता है । इसके लिये सदैव प्रयत्न करना पड़ेगा।
हिन्दू धर्म :- गृहस्थ, यति, नारी सभी (हर कोई) मोक्ष पा सकते हैं। किसी को रोक-टोक नहीं हैं। इसके लिये भक्ति ही काफी है। 'भक्ति से मुक्ति' यह उनकी नीति है अर्थात् सदाचार पर ध्यान देने की कोई जरूरत नहीं । चाहे जितना भी पापी हो, ऐसे पापी व्यक्ति भी शिव (भगवान्) के चरणों का भक्त बन जाये तो शिवजी उसके सारे पापों को मिटाकर पवित्र बना देते हैं । साथ ही साथ उसे मोक्ष का भी पात्र बना देते हैं । यह शिव भगवान् की महिमा है । बनाना या बिगाड़ना सब उनके हाथ में हैं। यह बात उनके 'नालायिरं तिरुमलै' ग्रंथ में लिखी हुई मिलती है । उनके 'तेवारं' आदि ग्रंथ में भी इसके कई उदाहरण है।
हिन्दुओं के मतानुसार गृहस्थ स्त्री-पुरुषों को, और भयंकर से भयंकर पापी को भक्ति से मोक्ष मिलता है। कोई कठिन परिश्रम करने की जरूरत नहीं है। आचार, विचार, सदाचार, कठिन तप आदि किसी की भी जरूरत नहीं है। केवल भक्ति करनी है बस मुक्ति मिल जाती है। इस तरह खूब प्रचार होने लगा । भयंकर पापी से लेकर पतित तक सभी को बिना परिश्रम के घर बैठे-बैठ, भोग भोगते-भोगते किसी तरह की रूकावट के बिना आसानी से मोक्ष मिलता है तो उसे कौन छोड़ सकता है? कोई नहीं । साधारण जनता आसान तरीकों को अपनाती है और कठिन को छोड़ देती है । हर आदमी यही चाहता है कि परिश्रम के बिना मोक्ष मिल जाये । किसी ने मोक्ष को देखा नहीं । देखे हुए व्यक्ति से सुना नहीं । मुक्ति तप करने वाले को मिलती है या भक्ति करने वाले को कोई देखकर बोलने वाला भी नहीं है। जो बड़े हैं, वे जो कुछ भी कहें, उस मत (धर्म) को, विश्वास से सत्य
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