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________________ बौद्धों के साथ शास्त्रार्थ किया। बौद्ध लोग उस शास्त्रार्थ में हार जाने से लंका द्वीप चले गये। इस कारण से भी बौद्ध धर्म क्षीण हो गया । समृद्ध जैन धर्म भी ज्यादा दिन टिक नहीं सका । उसका कारणहिन्दू धर्म में भक्ति मार्ग का प्रवेश । इसके बारे में आगे विचार किया जायेगा । प्राचीन काल में इन धर्मों के साथ एक द्रविड़ मत (धर्म) का वर्णन किया गया था । उक्त द्रविड़ धर्म वाले षण्मुख शिव-पार्वती और विष्णु की पूजा - भक्ति करते थे । वे लोग काली (कोट्रवै) माता को बलि (जीवहिंसा) दिया करते थे। लेकिन शिव और विष्णु देवता के सामने जीव हिंसा का आधार नहीं मिलता है । इसके अलावा, उस समय वैदिक धर्म के अतिरिक्त शैव-वैष्णव धर्म अलग-अलग दिखाई नहीं देते थे । ऐसी परिस्थिति में वैदिक धर्म वाले आगे बढ़ने का प्रयत्न करने लगे। इन लोगों को आगे बढ़ाना था तो जैन-बौद्धों को गिराना ही था । तभी काम बन सकता था । ये लोग उसके लिये रास्ता ढूँढने लगे । उन लोगों को यही दिखने लगा कि जैन-बौद्धों को हराना है तो हमें द्रविड़ मतों के साथ मिल जाना है तभी साधारण लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर सकते हैं। इसी उद्देश्य से वैदिक धर्म वाले के षण्मुख, कालीमाता, शिव-विष्णु आदि देवताओं को अपने देवता के रूप में स्वीकार करने लगे । सिर्फ इतना ही नहीं द्रविड़ धर्म के देवताओं के साथ संबंध भी जोड़ने लगे । उन देवताओं को नये-नये नाम कल्पित करने लगे । जैसे- षण्मुख के साथ सुब्रहमण्यम्, कन्दन, मुरुगन आदि नाम जोड़ा गया । तमिलनाडु की देवी वल्लि - देवानै को उनकी पत्नी बनाया गया । इस तरह आर्य द्रविड़ संबन्ध होने लगा । एक जमाने में वैदिक लोग 'शिशुनदेव' शिवलिंग उपहास करते थे। बाद में उसी को उत्कट देवता मानकर शिव का चिह्न मान लिया गया । पार्वती को शिव की पत्नी बना दिया गया । लेकिन केरल में पार्वती (काली) को शिव की पत्नी न मानकर बहिन मानते आ रहे हैं । षण्मुख को शिव और पार्वती का पुत्र मान लिया गया। महाराष्ट्र से आये विनायक को भी पुत्र मान लिया गया । वैसे ही विष्णु को मायोन, तिरुमाल, नारायणन आदि नाम दिया गया । इन सबकी नई-नई कथायें कल्पित कर दी गयीं । नया पुराण भी लिख दिया गया । इस तरह वैदिक मत (धर्म) द्रविड़ मत (धर्म) अलग-अलग न रहकर एक ही हिन्दू मत में (धर्म) परिवर्तित कर दिये गये। इन दोनों की मिलावट अप्रत्याशित नहीं हुई । इस प्रक्रिया में सैंकड़ों साल बीत गये । जैन धर्म का हास (पतन) हिन्दू धर्म के अन्दर भक्तिमार्ग प्रवेश करने के बाद उसने जैन धर्म पर आक्रमण करना शुरू किया । भक्तिमार्ग ने जैन धर्म का ह्रास किस प्रकार किया, आईये इस पर जरा विचार करेंगे । Jain Education International 37 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003645
Book TitleTamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2001
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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