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रहा है। वहाँ के बहुत से राजा जैन धर्मानुयायी थे। विशेषतः चालुक्य वंश के राजा लोग जैन धर्म को मानने वाले थे। बाद में वहाँ भी वैष्णव धर्म ने जोर पकड़ा । उस समय राजाओं के अमात्यगण जैन धर्म के पक्के श्रद्धावान थे। उन अमात्यों में खास कर जैन भक्त शिरोमणी चामुण्डराय और इरगप्पन तथा हुल्लर स्मरणीय है।
कुछ मनीषी विद्वानों का विचार है कि उस समय जैन धर्म की रक्षा के लिये जैन मठों की स्थापना की गई थी। जिस से जैन धर्म थोड़ा बहुत बचाया जा सका । यह युक्ति-संगत मालूम पड़ता है।
जैन धर्म के प्रति महामना अमात्य हुल्लर की सेवा असाधारण रही । वे राजा नरसिंहदेव के अमात्य एवं भण्डारी थे। उनके द्वारा बनाया हुआ मन्दिर श्रवणबेलगोला में आज तक भण्डारी बस्ती के नाम से प्रसिद्ध है । भण्डारी हुल्लर की सेवा से सन्तुष्ट जैनी जनता ने उन्हें 'सम्यक्त्व चूडामणी' नाम की पदवी से अलंकृत कर गौरव प्रदान किया । यह बड़ी महत्व की बात है।
दूसरे धर्मश्रद्धालु चामुण्डराय, संसार के महान् अतिशय स्वरूप भगवान् बाहुबली की प्रतिमा के निर्माण व स्थापना के कारण अमर बन गये । भविष्य में भगवान् बाहुबली की अतिशय मूर्ति के साथ-साथ सम्यक्त्वरत्न चामुण्डराय का नाम भी आचन्द्रार्क टंकोत्कीर्ण बना रहेगा । महान् विभूति बाहुबली भगवान् के कारण और सिद्धान्त रहस्य पारंगत आचार्यवर्य धरसेन भूतबली-पुष्पदन्त और सिद्धान्त चक्रवर्ती नेमिचन्द्र आदि आचार्यवों के कारण कर्णाटक में प्राचीनकाल से आज तक जैन धर्म बड़े महत्व के साथ चलता आ रहा है। आज भी वह स्थान वैभवमय है तथा भविष्य में भी रहेगा। ___ वहाँ पर (कर्नाटक में) जैन धर्म प्रसिद्धि के दो कारण हैं । पहला महामहिम भगवान् बाहुबली की प्रतिमा, दूसरा मूडबद्री के धवल सिद्धान्त ग्रन्थ । आजकल श्रवणबेलगोला जैनबद्री के नाम से भी प्रसिद्ध है। इन सभी कारणों से कर्नाटक जैन धर्म का महान् केन्द्र बन गया है।
अब तमिल प्रान्त के बारे में विचार करते हैं। तमिलनाडु के अन्दर चेर, चोल और पाण्डय नामक तीन वंश के राजा रहते थे। इन तीनों में बहुत से जैन धर्मानुयायी तथा सहानुभूतिशील होने के नाते यहाँ पर जैन धर्म खूब फला और फूला । प्राचीन चेर राज्य आजकल केरल में है। चोल राज्य के राजा की बहन 'कुन्दवे' ने तमिलनाडु के तिरुमले में जिनमन्दिर बनवाया था। आज भी वह मन्दिर कुन्दवै मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है । उनके जमाने में जैन धर्म उन्नत अवस्था में था।
पांड्यराजा 'नेडुमारन' कट्टर जैनी था। उनकी रानी ‘मंगयर्करसी' और अमात्य 'कुलच्चिरै'
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