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________________ को तिरोहित करने के लिये जैन धर्म के आदि संस्थापक के रुप में भगवान् ऋषभदेव को स्वीकार न करते हुए नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर को मानते है। उन लोगों की भ्रमपूर्ण वार्ताओं पर दृष्टि न डालकर विशिष्ट इतिहासवेत्ताओं के प्रामाणिक वचनों को स्वीकार कर लेना ही श्रेयस्कर है। उपर्युक्त कथन से जैनत्व की प्राचीनता प्रमाणित होती है। हमें अब दक्षिण की ओर यात्रा करनी है । दक्षिण में जैन धर्म कब से है ? कौन इसके प्रवर्तक रहे ? यह महान् धर्म कहाँ-कहाँ फैला हुआ था ? आदि जानना है। दक्षिण भारत- तमिल, तेलुगू, कर्नाटक और केरल- इन चार प्रान्तों में विभाजित है, इन चार प्रान्तों में केरल और तेलुगू में स्थानीय जैनियों को खत्म सा कर दिया गया है । आदिशंकराचार्य का जन्म केरल प्रान्त में हुआ था। वे जैन धर्म के कट्टर विरोधी थे। वे ३५ साल की उम्र में ही गुजर गये थे परन्तु उन्होंने अपनी ३५ साल की उम्र के अन्दर ही कन्याकुमारी से लेकर हिमालय तक पैदल चलकर अनेक मठों की स्थापना की थी। जिन के प्रभाव से जैन धर्म और बौद्ध धर्म का हास हुआ। उन्हीं के कारण केरल में जैन धर्म लुप्त हो गया । पूराने जमाने में केरल 'चेरनाडु कहा जाता था। वहाँ के राजा लोग प्रायः जैन धर्मानुयायी होते थे। 'शिलप्पधिकारं' नामक एक महान् काव्य तामिल भाषा में है। वह पहली या दूसरी सदी का माना गया है। उस महाकाव्य के रचयिता 'इलंगोवडिगल' चेरनाडु के युवराज थे। शिलप्पधिकारं से पता चलता है कि युवराज पक्के जैन थे और उनकी परंपरा भी जैन थी। शिलप्पधिकारं कथा का नायक वैश्यकल तिलक 'कोवलन' भी कट्टर जैन था । शिलप्पधिकारं की कथा रोचक और ऐतिहासिक है । एक जमाने में केरल एकदम जैनत्व से भरा हुआ था । आज वहाँ जैन धर्म का नामोनिशान भी नहीं है और एक भी स्थानीय जैन नहीं है। यह सब आदिशंकराचार्य के कारण से हुआ । सारांश यह है कि जैन धर्म को केरल से हटा दिया गया । दूसरा नम्बर आन्ध्र प्रान्त का आता है। प्राचीनकाल में वहाँ भी जैन धर्म प्रचलित था । न जाने वहाँ जैन धर्म कैसे खत्म कर दिया गया ? यह सब किस के प्रभाव से कब और कैसे हुआ? यह पता नहीं चलता । वास्तव में ‘एलोरा' की शिल्पकला से पता चलता है कि आन्ध्र जैन एवं बौद्ध धर्म का गढ़ था । आन्ध्र और महाराष्ट्र में जैन और बौद्ध धर्म महोन्नत स्थिति पर अवश्य रहे, इसमें कोई शक नहीं है । आन्ध्र में जैन धर्म की अपेक्षा वैष्णव धर्म ज्यादा प्रचलित है । काल के प्रभाव से उलट-पुलट होती रहती है। जैन धर्म के प्रख्यात महान् आचार्य कुन्दकुन्द का जन्म आंध्र में ही हुआ था । आन्ध्र पहले तमिलनाडु में मिला हुआ था । जैन धर्म के बारे में आचार्य कुन्दकुन्द से ज्यादा ठोस उदाहरण देने की कोई आवश्यकता नहीं है। ऐसे विशिष्ठ स्थान में आज एक भी स्थानीय जैन नहीं है। अब वहाँ व्यापारी या सर्विस वाले जैन ही आकर रहने लगे हैं । जहाँ तक कर्नाटक का संबंध है, प्राचीन काल से आज तक कर्नाटक जैन धर्म का केन्द्र बना 24 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003645
Book TitleTamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2001
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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