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हैं । अतः जैन धर्म- आर्हत् धर्म, अनेकान्त धर्म और स्याद्वाद धर्म भी कहलाता है ।
एक समय में जैन धर्म सारे भारत में महोन्नत स्थिति पर था। इस बात को जैन और जैनेतर एवं सभी विद्वान् स्वीकार करते है । जैनेतर विद्वानों में विशेषतः राधाकृष्णन, प्रो. विरुपाक्ष एम.ए., काशीप्रसाद जयसवाल, डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल आदि के नाम उल्लेखनीय है । विदेशी विद्वानों में डॉ. जेकोबी, डॉ. बूलर और स्मिथ आदि स्मरणीय और प्रशंसनीय है । जैन विद्वानों में चंपतरायजी, डॉ. ए.एन. उपाध्याय, बैरिस्टर जुगमन्दरलालजी और प्रो. ए. चक्रवर्ती आदि है । इन विद्वानों ने भारत के विषय में विशेषतः जैनत्त्व के विषय में शोध कर यह निष्कर्ष निकाला है कि भारत में विद्यमान धर्मों में जैन धर्म बहुत प्राचीन है और श्रेष्ठ है । इसके मूलनायक प्रवर्तक भगवान् महावीर ही जैन धर्म के प्रवर्तक एवं प्रचारक थे । उन लोगों के कहने का तात्पर्य यह है कि भगवान् महावीर के पहले जैन धर्म नहीं था। जैसे बुद्ध से बौद्ध धर्म । यह बात बिलकुल हास्यास्पद है । डॉ.राधाकृष्णन् का कथन है कि
जैन परंपरा भगवान् ऋषभदेव को अपना संस्थापक एवं प्रचारक बतलाती है । इस धर्म का काल बहुत प्राचीन है। भगवान् वर्धमान और पार्श्वनाथ के पहले भी जैन धर्म था, इसका प्रमाण यह है कि हिन्दुओं के यजुर्वेद में ऋषभदेव, अजितनाथ और अरिष्टनेमि- इन तीनों का उल्लेख मिलता है। भागवत् पुराण में भगवान् श्रीऋषभदेव को जैन धर्म का संस्थापक बताया गया है। एक अन्य वैदिक विद्वान् प्रो. विरुपाक्ष का कथन है कि भगवान् ऋषभदेव का ऋग्वेद में वर्णन किया गया है। 'वृषभं मासनां सपत्नानां विषसाह' इत्यादि से यह बात स्वीकार करने योग्य है ।
संत विनोबा भावेजी का कहना है कि जैन धारा को अति प्राचीन कहने में संकोच नहीं करना चाहिये, क्योंकि हिन्दुओं के अतिप्राचीन वेद वचनों में 'अर्हत् इदं दय से विश्व संसेवस' आदि वचन पाये जाते हैं । अर्हत् शब्द जैन धर्म के अधिनायक भगवान् ऋषभदेव को ही सूचित करता है । इस बात को हम यदि मंजूर कर लेते हैं तो हिन्दुओं के वेद काल से भी प्राचीनता जैन धर्म को मिल जाती है। इसमें कोई सन्देह की बात नहीं है । मोहनजोदड़ो और हड़प्पा से मिली नग्न दिगम्बर मूर्तियों से भी जैनत्व को (दिगम्बर जैनत्व) पाँच हजार साल से पहले की प्राचीनता प्राप्त होती है । मोहनजोदड़ो का काल पाँच हजार साल का है।
उदयगिरि और खण्डगिरि से प्राप्त शिलालेखों से (जो जैन भक्त शिरोमणी खारवेल के जमाने के है) भी हम कह सकते हैं कि जैन धर्म अत्यन्त प्राचीन है। इन सभी आधारों से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि जैन धर्म भगवान् ऋषभदेव रुपी हिमालय से निकली गंगा है, न कि भगवान् नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और वर्धमान से । अज्ञान एवं अनुसंधान के अभाव से कुछ इतिहासज्ञ, जैन धर्म की प्राचीनता
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