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________________ कहा जाता है। इन्हीं मठों में तो शास्त्र संरक्षण एवं उनका प्रतिलिपिकरण तथा अध्ययन-अध्यापन आदि की समुचित व्यवस्था की जाती रही है । कठिन दायित्व संभालने वाले, संस्कार से एकदम विरक्तचित, अगाध वैदुष्य के धनी एवं जिनमें जिनवाणी की सेवा, संरक्षण एवं प्रभावना की उत्कट अभिलाषा हो तथा व्यवस्था में पूर्ण निपुणता हो, ऐसे व्यक्ति को मठों का मठाधीश एवं भट्टारक बनाया जाता रहा है। ___ इन भट्टारकों के मठों में सामान्यतः विद्याभ्यासी छात्रों के अध्ययन-अध्यापन की विशेष व्यवस्था होती थी। इसलिए भी “मठ' की यह परिभाषा प्रसिद्ध हुई है । ( वत्युसार १२६ ) में “मठ मन्दिरतीति" अर्थात् मठ मन्दिर है क्यों कि उसमें ज्ञान की प्रभावना एवं ज्ञान का अभ्यास किया जाता है । इसलिये यह एक ज्ञान का मन्दिर है। भट्टारक भी त्यागी, गुणी, साधनाशील एवं महापण्डित होते हैं । भट्टारक की विशेषता का वर्णन करते हुए आचार्य इन्द्रनन्दि ने नीतिसार में लिखा है सर्वशास्त्र कलाभिज्ञो, नानागच्छाभिवर्द्धकः । महात्मना यः प्रभावी, भट्टारकः इत्युच्यते ।। अर्थात् जो सभी आगम शास्त्रों और कलाओं के ज्ञाता होते हैं, मूल संघ के अनेकों गण-गच्छों के अभिवर्द्धक महान् धर्मप्रभावक होते हैं वे ही भट्टारक कहलाते हैं । आज जो हमारा बहुमूल्य साहित्य एवं ताड़ पत्र आदि के अनेकों आगम ग्रन्थ सुरक्षित मिलते हैं, उनकी सुरक्षा का मूल एवं एक मात्र कारण ये मठ एवं इनके भट्टारक ही रहे हैं । अगर आज इनका संरक्षण नहीं होता तो दिगम्बर जैन समाज का स्वरूप एवं अस्तित्व ही संकटग्रस्त हो जाता । इन भट्टारकों ने हमेशा अपने प्रबंध कौशल से हमारे धर्मग्रन्थों की सुरक्षा की एवं उनका अध्ययन-अध्यापन संचालित किया है । धर्म प्रभावना में इनका योगदान अतुलनीय रहा है । धर्म संरक्षण एवं तीर्थ रक्षण के कार्य से प्रभावित होकर समाज भी इन्हें प्रभूत आदर-सम्मान हमेशा से देते आ रहा है । आज कोई कसी घटना या कारण विशेष से सम्पूर्ण भट्टारक परम्परा को यदि कोई लांछित या तिरस्कृत करना चाहता है तो वह उसकी बड़ी भूल होगी। ऐसे संस्कारी दिगम्बर जैन की अवहेलना या तिरस्कार कोई करता है तो उसे विचार लेना चाहिए कि वह दिगम्बर जैन आम्नाय/परम्परा के विरुद्ध कार्य कर रहा है। हमारे आचार्यवर्य ने तो नीतिसार में यहाँ तक लिखा है कि सगुणो निर्गुणो वापि, रावको मन्यते सदा । नावज्ञा क्रियते तस्य, तन्मूला धर्मवर्तना ।। 105 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003645
Book TitleTamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2001
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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