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________________ यह है कि सगर राजा के पुत्रगण कैलाशपर्वत को घेर लेते हैं। उसके चारों ओर खाई बनाकर उसमें गंगा नदी के प्रवाह को प्रवेश कराते हैं, जिसके प्रवाह से देश, नगर नाश होने लगते हैं । भगीरथ उस प्रवाह को समुद्र में मिला देता है । इस कथा को बड़े सुन्दर ढंग से उस चट्टान पर चित्रित किया गया है। पल्लव राजा के जमाने में इसका निर्माण हुआ था। आजकल यह स्थान पर्यटन क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध है । प्रतिवर्ष लाखों दर्शक इसे देखने आते हैं। यह स्थान चेन्नई से करीब ५५ कि.मी. पर है। चित्रकला के नमूने देखने लायक है । यहाँ के मूर्ति शिल्पकार प्रसिद्ध है। ____पांडीचेरी :- यहाँ खंडेलवाल दिगम्बर जैनों के १४० घर है। दो दिगम्बर जैन मंदिर है। नवीन पंचायती मन्दिर की प्रतिष्ठा भी हो चुकी है । स्थानीय दिगम्बर जैन लोगों के करीब २० घर हैं । कडलूर :- (ओटी) प्राचीन नगर है। यहाँ दिगम्बर जैनों के १५ घर है। श्री आदिनाथ भगवान् का प्राचीन जिनालय है। पहले यहाँ जैनियों पर बहुत अत्याचार हुए थे । हजारों जैन साधु-साध्वियों को कत्ल कर दिया गया था । पूराने समय में इस शहर का नाम 'पाटलीपुत्र' था । यह जैन धर्म का प्रधान केन्द्र था। यहीं से जैन धर्म का प्रचार होता था । यहाँ के मन्दिरों में कई धातु की मूर्तियाँ हैं। चॉदी की प्रतिमायें भी है। जिनालय शिखर-बद्ध है किन्तु हालत ठीक नहीं है। पूज्य आर्यिका विजयामती माताजी का यहाँ चातुर्मास हुआ था । महासभा से अनुदान दिया गया है । जीर्णोद्धार कार्य चल रहा है। पनरुटी :- यह भी पूरातन नगर है। पहले यहाँ भी जैन लोग अधिक संख्या में रहे होंगे। स्थानीय जैनों के घर नहीं है परन्तु दिगम्बर खंडेलवाल जैनों के ५ घर हैं । यहाँ एक चैत्यालय है। जिनालय बनकर प्रतिष्ठा भी हो चुकी है। कुंभकोणम् :- यह बड़ा शहर है। यहाँ स्थानीय दिगम्बर जैनों के करीब १५ घर हैं । यहाँ एक जिन मन्दिर है । मन्दिर छोटा है। जीर्णोद्धार की आवश्यकता है। पहले यहाँ जैन लोग संपन्न थे परन्तु अब उतने नहीं है । मन्दिर के मूलनायक चन्द्रप्रभ भगवान् है । मन्दिर के पीछे नारियल का बगीचा है। धात् की करीब ४० मर्तियां हैं। शासन देवताओं की मूर्तियां भी है। इस भॉति इस स्मारिका में कई स्थानों का विवरण दिया गया है। प्राचीनकाल से यहाँ जैन धर्म के अनुयायीगण, जैन मन्दिर, जैन तीर्थं और साधु-साध्वियों की स्थिति का विवेचन है। उनकी परिस्थितियां , उत्थान-पतन और संघर्ष आदि की जानकारी भी दी गई है। __इससे पाठकगण समझ सकते हैं कि एक जमाने में तमिलनाडु प्रान्त में जैन धर्म अपना झंडा फहराता था । वह उसका युग हुआ करता था। जो वह अब बीत चुका है । वह अतीत हो गया है । 96 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003645
Book TitleTamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2001
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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