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दूसरे संघ वालों ने राजा की विद्वत्ता की परीक्षा करने के लिए कविता लिखकर भेजी थी। उसे देखकर उस नौकरानी का जवाब यह था कि इसके लिए राजा के पास क्यों जा रहे हो ? मैं स्वयं बता दूंगी, इतना कहकर तत्क्षण उसका जवाब दे दिया। राजघराने में विद्वत्ता की इतनी महिमा थी। अहो आश्चर्य ! चामुण्डराय की बहन 'पलप्पै' नाम की देवी इस मन्दिर में समाधि सल्लेखना के द्वारा आत्मसाधना कर स्वर्ग सिधारी थी। कोगुमण्डलशतकं नाम का ग्रंथ इन सभी बातों को स्पष्ट करता है। इस गाँव के पास एक छोटा सा पहाड़ है। उसमें गुफा और शासन है । यह ब्राह्मी लिपि में है, जो १८०० वर्ष पहले का है।
इसके पास 'तिंगलूर' में श्रीपुष्पदन्त भगवान् का मन्दिर है 'पूंतुरै' गाँव में भी पार्श्वनाथ भगवान् का मन्दिर है । पद्मावती देवी की मूर्ति है । 'वेल्लेडु' गॉव के पास खेत में आदिनाथ भगवान् का मन्दिर है। वहाँ के लोग भक्ति-भावना के साथ पूजा करते हैं । 'सिन्नावूर' में भी आदिनाथ भगवान का मंदिर है।
इन सभी आधारों से पता चलता है कि यह स्थान जैन धर्म का केन्द्र रहा था। आज वहाँ जैन पुजारी का एक ही घर है । मन्दिर के जीर्णोद्धार की बड़ी आवश्यकता है । महासभा से अनुदान दिया गया है। कार्य चल रहा है।
महाबलीपुरं :- यह जैन स्थल नहीं है । यहाँ चट्टानों पर शिल्प-कला के कई नमूने हैं । उनमें एक अजित तीर्थकर पुराण में कहे गये सगर चक्रवर्ती की कथा को प्रदर्शित करता है। इन उत्कीर्ण की हुई मूर्तियों को आजकल 'अर्जुनतप' कहते हैं । जो कि गलत रूप में कहा जाता है । वास्तविक बात
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