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ऐसी परिस्थिति में भी यहाँ जैन लोग रहते हैं, मन्दिर है , धर्म का प्रचार है फिर भी यह याद रहें कि धर्म के उत्थान एवं पतन की ओर विवेक के साथ जागृति की जरूरत है , साथ ही एकता की भी।
१६८१ में श्रवणवेलगोला में भगवान् बाहुबली का महामस्ताभिषेक समाप्त होने पर आचार्यरत्न विमलसागरजी महाराज के आदेशानुसार आर्यिका गणिनि विजयमती माताजी ने अपने संघ को लेकर दक्षिण भारत में विहार करने का निश्चय किया । आर्यिका संघ ने पॉच चातुर्मास तमिलनाडु प्रान्त में करके यहाँ धर्म का प्रचार किया और स्थानीय जैन बंधुओं को सही मार्ग बताकर उनमें धर्म के प्रति जागृति जगाई।
उस समय आर्यिका संघ ने जिनमन्दिरों की दशा देखकर जीर्णोद्धार कराने का संकल्प किया । उसी संकल्प को दिगम्बर जैन महासभा तथा कुछ उत्तर भारत के विशिष्ट व्यक्तियों के द्वारा क्रियान्वयन किया जा रहा है।
आर्यिका संघ के धर्म प्रचार से वास्तविक रूप में, दक्षिण में जो जैन साधुओं की विरक्ति हो गई थी। उसे विराम लगा । उसके पश्चात् अनेक मुनि एवं आर्यिकाओं का दक्षिण भारत में विहार होता रहा और धर्म प्रभावना बढती गई ।
इतना होने के बाद भी यहां के प्राचीन जिन मंदिरों की हालत सुधरी नहीं और उन्हें जीर्णोद्धार की बहुत आवश्यकता है। पिछले ३ साल से अखिल भारतीय दिगम्बर जैन तीर्थ जीर्णोद्धार कमेटी द्वारा अनेक मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया जा रहा है लेकिन यह भी पर्याप्त नहीं है। धन की कमी इस कार्य में रूकावट बनी हुई है।
अतः हम सभी का दायित्व है कि पूर्व आचार्यों की तपोभूमि के इन विशाल प्राचीन जिन मन्दिरों के जीर्णोद्धार में तन-मन-धन से सहयोगी बने ।
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