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________________ चाहिए, ऐसा विधान है। मौंजिबन्धन से पूर्व पाँचवें अथवा सातवें वर्ष में, जब सूर्य उत्तरायण हो, बालक को लिपिज्ञान आरम्भ करवा देना उपयुक्त है। सोमसेन ने केवल सूर्य के ही उत्तरायण और दक्षिणायन पर विचार नहीं किया है, अपितु उन्होंने शुभ और अशुभ नक्षत्रों की भी गणना की है। उनका कथन है कि यदि बालक को उत्तम नक्षत्र में लिपिज्ञान आरम्भ कराया जाये तो विद्या सहज सिद्ध होती है और कोई व्यवधान नहीं आता । सिद्ध पुरुष ऐसा ही मानते हैं--- "मृगादिपंचस्वपि तेषु मूले । हस्तादिके च क्रियतेऽश्वनीषु । पूर्वात्रये च श्रवणत्रये च । विद्यासमारम्भमुशान्त सिद्धयै ॥"१ अर्थ--बालक को विद्यारम्भ मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मूल, हस्त, चित्रा, अश्विनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपदा, श्रवण, धनिष्ठा और शततारका नक्षत्रों में कराना चाहिए। ऐसा करने से विद्या की सिद्धि सहज ही हो जाती है, ऐसा विद्वानों ने कहा है। दिनों का विचार प्रायः चलता है। अर्थात् विद्यारम्भ के लिए कौन-सा दिन शुभ होता है और कौन-सा अशभ ? सोमसेन ने इस सम्बन्ध में भी विचार किया है। उनकी दृष्टि में रविवार को विद्यारम्भ कराने से आयुवृद्धि, सोमवार को स्थूलबुद्धि, मंगलवार को मृत्यु, बुधवार को मेधाशक्ति, गुरुवार को कुशल बुद्धि, शुक्रवार को तर्कशक्ति और शनिवार को शरीर-क्षीणता होती है। अनध्याय के दिनों, प्रदोष के समय, छठ तथा रिक्ता तिथियों--चतुर्थी नवमी और चतुर्दशी को विद्यारम्भ नहीं कराना चाहिए। विद्यारम्भ के लिए बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार शुभ माने गये हैं, सोमवार और रविवार मध्यम, शनिवार और मंगलवार निकृष्ट हैं। पाँचवाँ वर्ष लगने पर और सूर्य के उत्तरायण होने पर, बालक को विद्यारम्भ का मुहर्त कराना चाहिए। उस समय सरस्वती और क्षेत्रपाल की पूजा शुभ होती है-- "आदित्यादिषु वारेषु विद्यारम्भफलं क्रमात् । आयुर्जाड्यं मतिर्मेधा सुधीः प्रज्ञा तनुक्षयः ॥ अनध्यायाः प्रदोषाश्च षष्ठी रिक्ता तथा तिथिः । वर्जनीया प्रयत्नेन विद्यारम्भेषु सर्वदा ॥ विद्यारम्भे शुभा प्रोक्ता जीवज्ञप्तित वासराः । मध्यमौ सोमसूयौं च निन्द्यश्चैव शनिः कुजः ॥ उदगते भास्वति पंचमेऽब्दे । प्राप्तेऽक्षर स्वीकरणं शिशूनाम् । सरस्वती क्षेत्रसुपालकं च । गुडोदनाचैरभिपूज्यं कुर्यात् ॥२ १. वही, ८/१६५. २. सोमसेन, वैवर्णिकाचार, ८/१६६-६६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003641
Book TitleBrahmi Vishwa ki Mool Lipi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages156
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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