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वैष्णवी, वाराही, चामुण्डा । हेमचन्द्र ने सरस्वती के नौ नाम बताये-वाक्, ब्राह्मी, भारती, गौः, गी:, वाणी, भाषा, सरस्वती और श्रुत देवी। इसके अतिरिक्त उन्होंने पीतवर्ण लोहे के पाँच नामों में एक नाम ब्राह्मी भी लिखा। भागुरि ने भी ब्राह्मी को 'मातरः' कह कर सम्बोधित किया है। उन्होंने लिखा है, "ब्राह्माद्या मातरः स्मृताः।" हर्षकीर्ति ने अपनी शारदीया नाममाला में वाग्देवी, शारदा, भारती गीः और सरस्वती के साथ ही ब्राह्मी को भी रखा है। उन्होंने उसे हंसयाना ब्रह्मपुत्री कहा है -
"वाग्देवी शारदा ब्राह्मी भारती गीः सरस्वती।
हंसयाना ब्रह्मपुत्री सा सदा वरदास्तु वः ॥"४ कुछ लोग अपनी पुत्रियों का नाम ब्राह्मी रखते थे। वाराणसी के महाराजा विश्वसेन की महारानी का नाम ब्राह्मी देवी था। आगे के साहित्य में इन्हीं को वामादेवी कहा गया। तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ इनके पुत्र थे। आचार्य गुणभद्र के उत्तरपुराण में वामादेवी का उल्लेख है--
"वाराणस्यामभूद्विश्वसेनो काश्यपगोत्रजः ।
ब्राह्मयस्य देवी सम्प्राप्ता वसुधारादि पूजना ॥ इसी प्रकार प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की दो पुत्रियाँ थीं-ब्राह्मी और सुन्दरी। भगवज्जिनसेनाचार्य ने महापुराण में इनका विस्तृत विवेचन किया है । हरिवंश पुराण में भी इनका उल्लेख मिलता है । पुरुदेव चम्पू में ब्राह्मी की उत्पत्ति का कलापूर्ण वर्णन है --
"ब्राह्मीं तनूजामति सुन्दरांगी ब्रह्मनाथ तस्यामुत्पादयत्सः । कलानिधेः पूर्णकलां मनोज्ञां
प्राच्या दिशायामिव शुक्लपक्षः ।"६ ऋषभदेव आदि ब्रह्म कहलाते थे। उन्हें यह ब्रह्मपद, अपने समाधितेज से अष्ट कर्मों को भस्म करने के बाद प्राप्त हुआ था। आचार्य समन्तभद्र ने उन्हें 'बभूव च ब्रह्मपदामृतेश्वरः' लिखा है । वे विश्वचक्षुः थे और समग्र विद्याओं के धनी । उनका १. अभिधानचिन्तामणि, २/११५, पृ० ५७. २. वही, २/१५५, पृ० ६७. ३. वही, ४/११४, पृ० २५८. ४. हर्षकीर्ति, शारदीया नाममाला, १/२. ५. गुणभद्र, उत्तरपुराण, ७३/७५. ६. पुरुदेव चम्पू, ६/३६:४०
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