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को सुदृढ़ किया जा सकता है और भारत के उज्ज्वल अतीत पर विशेष प्रकाश डाला जा सकता है।"१ अर्थ संदृष्टि प्राचीन ग्रन्थों पर आधृत एक महत्त्वपूर्ण
___प्राकृत को काम में लाने के कारण जैन और बौद्ध अंकलिपि के उद्भावक नहीं हो सकते।" बूलर का यह कथन कुछ अटपटा और तर्क-हीन सा लगता है। अंक और उस पर आधृत गणित का समुन्नत रूप जैन प्राकृत ग्रन्थों में ही सब-से-अधिक देखा जाता है। विद्वानों का कथन है कि इन प्राकृत ग्रन्थों में विवेचित गणित के आधार पर ही अनन्त, सलागागणन, कर्मबन्ध, द्रव्यक्षेत्रादि और मार्गणाओं का प्ररूपण किया जा सका। प्राकृत ग्रन्थों में अविभाग प्रतिच्छेद को इकाई रूप में लेकर यथार्थ अनन्तों का अल्प-बहुत्त्व संरचित किया गया है। जहाँ इटली में जीनो (४६० ई० पूर्व) का विभाज्यतासम्बन्धी तर्क और चीन के हुईथिह (५ वीं सदी ई०पू०) का अक्षरभास अनन्त की गणना न कर सका, वहाँ जैन प्राकृत ग्रन्थों का गणित एक सिद्धान्त रूप में प्ररूपित हुआ। स्पष्ट है कि यदि प्राकृत अंकों के उद्भावन में बाधक होती, तो उनका ऐसा विकसित रूप प्राकृत ग्रन्थों में न मिलता। यदि महावीर का तीर्थकाल अपनी लोकोतर अवधारणाओं को लौकिक गणित के माध्यम से सिद्ध करने में समर्थ हुआ है, तो यह निश्चित है कि प्राकृत अंक विकास के लिए वरदान थी, अभिशाप नहीं। ___ जैन ग्रन्थों में लेख-सामग्री के प्रमाण बिखरे हुए हैं। मैंने उन्हें यथा सम्भव इस ग्रन्थ में देने का प्रयास किया है। फिर भी, बहुत कुछ ऐसा रह गया है , जिसे मैं नहीं संजो सका हूँ, ऐसा मुझे विश्वास है । मुनिश्री नथमल के ग्रन्थ 'जैन दर्शन, मनन और मीमांसा'२ में 'पोत्थारा' के सम्बन्ध में नये सन्दर्भो का उल्लेख हुआ है। उन्होंने लिखा है कि 'राजप्रश्नीय सूत्र' में पुस्तक रत्न का वर्णन करते हुए कम्बिका (कामी), मोरा, गांठ, लिप्यासन (मषिपात्र), छंदन (ढक्कन), सांकली, मषि और लेखनी की चर्चा की गई है। प्रज्ञापना (पद१) में पोत्थारा शब्द आता है, जिसका अर्थ होता है--लिपिकार--पुस्तक विज्ञान-आर्य । इसी में बताया गया है कि अर्द्धमागधी भाषा और ब्राह्मी लिपि का प्रयोग करने वाले माषार्य होते हैं । दशवकालिक की हारिभद्रीया वृत्ति (पत्र २५) में पाँच प्रकार की पुस्तकें बतलाई गई हैं--गण्डी, कच्छवी, मुष्टि, संपुटफलक और सृपाटिका । निशीथचूर्णि में भी इनका उल्लेख है। अनुयोगद्वार का पोत्थकम्म (पुस्तक कर्म) शब्द भी लिपि की प्राचीनता का एक प्रबल प्रमाण है। टीकाकार ने पुस्तक का अर्थ १. भिक्षु अभिनन्दन ग्रन्थ, पृष्ठ 224-25. २. मुनिश्री नथमल, जैन दर्शन, मनन और मीमांसा, परिवद्धित संस्करण, आदर्श साहित्य संघ,
चूरू, 1973, पृष्ठ 85.
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