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सब-से-अग्रिम थे । श्रीमद्भागवत् में उन्हें आदि मनु स्वायम्भुव के पुत्र प्रियव्रत और प्रियव्रत के आग्नीघ्र तथा आग्नीघ्र के नौ पुत्रों में ज्येष्ठ माना है। महाराजा नाभि अपने विशिष्ट ज्ञान, उदारगुण और परमैश्वर्य के कारण कुलकर अथवा मनु कहलाते थे । उनके समय में एक बृहद् परिवर्तन हुआ कि यह पृथ्वी भोगभूमि से कर्मभूमि में बदलने लगी। उन्होंने इस बदलते युग को दृढ़ता-पूर्वक सम्भाला, अपनी निष्ठा, श्रम और प्रतिभा के बल पर उसे व्यवस्थित किया, जिससे त्राहि-त्राहि करती प्रजा सुख सन्तोष की साँस ले सकी । शायद इसी कारण उनकी स्थायी यादगार के रूप में इस देश को अजनाभवर्ष कहा जाने लगा। डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने लिखा है, "यही नाभि अजनाभ भी कहलाते थे, जो अत्यन्त प्रतापी थे और जिनके नाम पर यह देश अजनाभवर्ष कहलाता था ।" १
नाभि-पुत्र ऋषभदेव ने प्रजा को कर्म की शिक्षा दी । उसमें निष्णात बनाया । वे कर्म के वरेण्य दूत थे । उन्होंने कर्मभूमि में रहना सिखाया। वे सब से पहले आदमी थे, जिन्होंने "शशास कृप्यादिषु कर्मसु प्रजा: " -- जैसा महत्त्वपूर्ण कार्य किया । खेती की पहली शिक्षा ऋषभदेव ने दी थी, इस बात को शायद विश्व न जानता हो । ऐसे उद्धरण जैन ग्रन्थों में सुरक्षित हैं। सच यह है कि खेती से ही कर्मभूमि की मुख्य समस्या का समाधान हुआ, और आर्य कृषि-जीवी कहलाये । यदि भारत इस 'कृषि - जीवों' की परम्परा को अक्षुण्ण रखता, तो वह कभी-भी अधोगति को प्राप्त नहीं हो सकता था। आज भी उसकी उन्नति कृषि में ही सुरक्षित है । ऋषभदेव ने तो उस पर इतना अधिक ध्यान दिया कि उसके माध्यम वृषभ को अपना चिह्न माना । वे वृषभलाञ्छन कहलाये । पुरातत्त्वज्ञ इस चिह्न से ही उनकी मूर्तियों को पहचान पाते हैं । इतिहास के पुराने पृष्ठों पर बचा यह एक ऐसा उद्धरण है, जिसे अपनाकर आज भी भारत राष्ट्रों का शिरमौर बन सकता है। जब मिसीसीपी की धरती खेती से डालर उगा सकती है, तो गंगा, यमुना, सिन्धु और नर्मदा की पावन भूमि क्यों नहीं एक ऐसा प्रश्न है, जिससे भारत गणतन्त्र सबक तो ले हो सकता है ।
खेती में इक्षुदण्ड स्वतः प्रसूत थे, किन्तु प्रजा उनका उपयोग करना नहीं जानती थी । ऋषभदेव ने उसकी विधि बताई । उनसे रस निकालना सिखाया | उस पर बल दिया । यहाँ तक कि उन्होंने अपने को इक्ष्वाकुवंशी कहा। महापुराण में लिखा है, "आकानाच्च तदिक्षूणां रस-संग्रहणे नृणाम् । इक्ष्वाकुरित्यभूद् देवो जगतामभिसम्मतः ।। " १२ आज का भारत इन इक्ष्वाकुवंशियों का वंशधर है। सही
१. मार्कण्डेयपुराण: सांस्कृतिक अध्ययन, पादटिप्पड़ 1, पृ. 138.
२. महापुराण, भगवज्जिनसेनाचार्य, 16 / 264.
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