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संभवतः हाथीगुम्फा का शिलालेख खारवेळ के राजत्व के चतुर्दश वर्ष ही उत्कीर्णित हुआ था । कारण यह है कि उसमें केवल उनके तेरह वर्षो के कार्य विवरण वर्षानुक्रम से है। उसका परवर्त्ती इतिहास आज भी अंधकारावृत्त है। अतः खारवेळ ने कितने वर्षों तक राज्य का शासन किया था और कब तक जीवित थे कहा नहीं जा
सकता ।
कलिङ्ग के महाराजा खारवेळ
हाथीगुम्फा शिलालेख से स्पष्ट प्रतीत होता है कि कलिङ्ग में महाराज खारवेळ चेदि महामेघवाहन वंश के तृतीय राजा थे । "वेनाभि विजयो ततिये कळिंग राजवसे पुरित युगे महाराजा भिसेचनं पापुनाति । ” ( पं. २ / ३)
वेन के पुत्र का अभिषेक उत्सव के साथ खारवेळ का अभिषेक उत्सव की तुलना तात्पर्यपूर्ण है। महाभारत की वर्णनानुसार अभिषेक के समय देवता और ऋषिगण वेन के पुत्र पृथु को शपथ लेने को कहते हुए निर्देश देते हैं:
..... प्रतिज्ञा चाधिरोहस्य मनसा कर्मणागिरा । पालयिस्यामहं भौमं ब्रह्म इत्येन चासकृत || यक्षात्र धर्मो नित्योक्त दण्डनीति व्यापाश्रय | तमशकः करिष्यामि स्ववशो न कदाचन ॥
अर्थात्, साथ ही प्रतिज्ञा करो कि मैं मन, वचन और क्रियायों के द्वारा पृथ्वी [ देश ] का निरंतर पालन करूंगा । वेद में दण्ड नीति से संबंध रखनेवाले जो नित्य धर्म बताये गये हैं, निःशंक होकर मैं उनका पालन करूंगा। कभी स्वच्छंद नहीं होऊगा । [ महाभारत: शांति पर्व : ५२/१०६-०७]
पृथु
के बारे में महाभारत के इसी पर्व में फिर कहा गया है
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