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________________ नव वसानि योवराजं पसासितं [ ॥] संपुर्ण चतुवीसति वसो तदानी धमानो सेसो नाभि विजयो ततिये पंक्ति - ३ कलिंग राजवसे पुरिस युगे महाराजाभिसेचनं पापुनाति [ ॥] अभिसित मतो च पधमेवसे वात विहत गोपुर पाकार निवेसनं पटिसंखारयति कलिंग नगरि खिवीर सितल तडाग पाडियो च वंधापयति सवुंयान पटि संटपनं च पंक्ति-४ कारयति पनतिसाहि सतसहसेहि पकतियो च रंजयति [ ॥] दुतिये च वसे अचितयिता सातकनिं पछिमदिसं हय गज नर रध बहुलं दंडं पठापयति [I] कन्हवेनां गताय च सेनाय वितासिति असिक नगरं [I] तति पुन वसे पंक्ति-५ गंधव वेद बुधो द नत गीत वादित संदसनाहि उसव समाज कारापनाहि च कीडापयति नगरि [1] तथा चवथे वसे विजाधराधिवासं अहत पुवं कलिंग पुवराज निवेसितं .... वितध मकुट स निखित छत पंक्ति - ६ भिंगारे हित रतन सापतेये सव रठिक भोजके पादे वंदा पयति [I] पंचमे च दानी वसे नंदराज तिवस सत ओघाटितं तनसुलिय वाटा पनाडि नगरि पवेस [य] ति... [ ॥] अभिसितो च [ छठे ] वसे राजसेयं संदंसयं तो सवकरण Jain Education International १० ... For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003640
Book TitleKharvel
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year1993
Total Pages136
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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