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का संशोधित पाठ का प्रकाशन करवाया था (Epigraphia Indica, Vol.xx) | १९२९ में वेणीमाधव बडुआ का “The Old Brahmi Inscriptions in Udayagiri and Khandagiri caves' ग्रंथ प्रकाशित हुआ। इस ग्रंथमे बडुआ महोदय ने अभिलेख के पूर्णांग पाठ देने की चेष्टा की थी। पर उनके पठन में कल्पना की अधिकता के कारण लगता है उसकी ऐतिहासिक उपादेयता ही नहीं रही। लिपिविद् दीनेश चंन्द्र सरकारने भी सन् १९४२ में अपने Select Inscriptions, Vol.I में भी इसी अभिलेख का पाठोद्धार किया है। इस संदर्भ में इतिहासकार नवीन कुमार साहू ने अपने अंग्रेजी ग्रंथ “खारवेळ" में अन्तिम प्रयास किया है।
इसे कदापि नकारा नहीं जा सकता कि अनेक प्राच्य और पाश्चात्य विद्वानों ने इस अभिलेख का प्रमाद रहित पाठोद्धार करने के हेतु बर्षों के अथक श्रम के बावजूद इसका सही पाठोद्धार हो नहीं पाया है, न व्याख्या ही। क्योंकि अभिलेख की आद्य चार पंक्तियों के अतिरिक्त अनकांशों में वर्ण पठनयोग्य अवस्था में नहीं है। हमने यहां अपने पूर्ववर्ती विद्वानों के पाठोद्धार और अभिलेख ही के अध्ययन और अनुशीलन के आधार पर निम्नोक्त पाठ और टीका प्रस्तुत करने का विनम्र प्रयास कियाहै। .
पंक्ति - १
नमो अरहंतानं [1] णमो सवसिधानं [1] ऐरेण महाराजेन महामेघवाहनेन चेतराज वस वधनेन पसथ सुभलखलेन चतुरंतलुठान] गुणउपेनेत कलिंगाधिपतिना सिरि खारवेळेन
पंक्ति-२
पंदरस वसानि सीरि कडार सरीरवता कीडिता कुमार कीडिका [1] ततो लेख रूप गणना ववहार विधि विसारदेन सवविजा वदातेन
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