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________________ हाथीगुम्फा शिलालेख: ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर के समीप उदयगिरि का हाथीगुम्फा नामक एक प्राकृतिक गुम्फा के आभ्यंतरीण छत पर खोदित महाराज खारवेळ की एक सुदीर्घ प्रस्तर-लिपि है। यही भारत-प्रसिद्ध “हाथीगुम्फा शिलालेख" है। यह शिलालेख ओडिशा में अंग्रेज शासन की प्रतिष्ठा के प्राक्काल तक अज्ञात था। इसकी खोज कर सब से पहले ष्टर्लिंग साहब ने ई. १८२० में अपने “An Account of Geographical, Statistical and Historical of Orissa or Cuttack" ग्रंथ में संदर्भित किया था। तब इसका एक असंपूर्ण चित्र ही प्रकाशित हुआ था। परन्तु उस समय ब्राह्मी लिपि को पढ़ पाना संभव न होपाने के कारण विद्वानों को इसकी सही जानकारी नहीं मिल पायी। जेम्स प्रिन्सेप् ने ब्राह्मी लिपि का रहस्योद्घाटन ई.१८३५ तक कर लिया था, परिणामत: प्राचीन भारतीय इतिहास के अनेक तथ्य प्रकाशित हुए। हाथीगुम्फा अभिलेख की एक चाक्षुस प्रतिलिपि (Eye copy) काफी परिश्रमसे मार्खम् किटो (M. Kittoe) ने बनायी और वही प्रतिलिपि पाठोद्धार के लिये प्रिन्सेप को भेजीगयी। हाथीगुम्फा अभिलेख प्रथम बार प्रिन्सेप के द्वारा पठित होकर ई. १८३७ में प्रकाशित हुआ (J.A.S.Vol. VI). इसके बाद फिर इसे ई. १८७७ में अलेकजीडर कनिहाम ने अपने संकलित ग्रंथ (A. Cunningham- "Corpus Inscriptionum Indicarum Vol. I) में प्रकाशित करवाया। उसके पश्चात राजेंद्रलाल मित्र ने Antiquities of Orissa, Vol. II ग्रंथ में ई. १८८० में सामान्य परिवर्तित करके प्रकाशित किया था। उसी वर्ष लॉक साहब (Locke) स्वयं उदयगिरि आए और इस अभिलेख का एक "प्लास्टर कास्ट" तैयार किया। अब वही "प्पास्टर कास्ट" कलकत्ता के इण्डियन म्यूजियम में संरक्षित है। ई. १८८५ में विएना में प्राच्य विद्याविशारदों को लेकर आंतर्जातिक कांग्रेस का छठा अधिवेशन का 3FRIST F3T SIT (VIth International Congress of Orientalist), जहां पण्डित भगवान लाल इंन्द्रजी ने हाथीगुम्फा अभिलेख का एक संशोधित पाठ प्रस्तुत किया था। यह उल्लेखनीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003640
Book TitleKharvel
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year1993
Total Pages136
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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