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'ऐर' शब्द को किसी राजवंश का नाम के रूप में स्वीकारना केवल भ्रांति ही है, निःसंदेह कहा जा सकता है। डॉ नवीन कुमार साहु के मतानुसार प्राकृत का “ऐर" शब्द संस्कृत “आर्य” शब्द का रूपान्तरण मात्र है। अभिलेखों में ब्राह्मण सातवाहन-वंशी राजाओं के नाम के साथ भी “ऐर" है। अब यह प्रश्नका उठाया जाना स्वाभाविक ही है कि ब्राह्मण सातवाहन वंश का अन्य नाम “ऐर" था? प्राचीन भारत में “आर्य” या “ऐर" का प्रयोग सम्मानसूचक संबोधन के रूप में होता था। इसके अनेक दृष्टांत हैं। अतः खारवेळ को ‘ऐर' वंशी मानना गलत ही होगा।
खारवेळ के राजत्व के विवरण के बारे में जानने के लिये उनके समसामयिक उदयगिरि और खण्डगिरि अभिलेखों पर आश्रित होना पड़ेगा। उदयगिरि के हाथीगुम्फा अभिलेख में खारवेळ के बाल्यकाल से लेकर शासन के त्रयोदश वर्ष तक का विवरण है। इसमें वर्षानुवर्ष के विस्तृत विवरण लिपिबद्ध है। अब तक भारत भर में प्राप्त दूसरे किसी भी अभिलेख में इस तरह के विस्तृत विवरण नहीं है। अभिलेख के अतिरिक्त पर्वत-गात्र पर उरेह गये चित्रों के माध्यम से भी खारवेळ के गौरवमय कार्य-विवरण के बारे में ज्ञात होता है। इन्हें भूलाकर मात्र अभिलेखों के जरिए खारवेळ के राजत्वकालीन ऐतिहासिक भूमिका पर विचार करें तो असंपूर्णता ही हाथ लगेगी। अतः यहाँ संक्षेप में तथा सहज सरलता से खारवेळ चरित की चर्चा, अभिलेख
और खोदित चित्रों पर अवलंबित होकर करने का प्रयास भर कर रहे हैं।
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