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अशोक के अभिलेखों में "श", "स" और "ष" तीनों हैं । इनके अतिरक्त हाथीगुम्फा अभिलेख में “ञ”, "ढ" और "फ" भी नहीं हैं । सर्वत्र “ क्ष" स्थान पर "ख" का प्रयोग हुआ है। यद्यपि "ण" और "न", दोनों वर्ण हैं, फिर भी अनेकत्र "ण" के स्थान पर "न" का प्रयोग देखा जाता है। अनेकत्र “ध" ने "थ" का स्थान ग्रहण किया है जबकि अभिलेख में कई जगह " थ” का भी उल्लेख है। सावलील उच्चारण के लिये सारे अभिलेख में युक्त व्यंजन बर्णों का मानो परिहार हुआ हो । मात्र दो ही शब्द हैं- "कन्ह" " और बाम्हण" जिनमें 'ह' के साथ 'न' और 'म' को संयोजित किया गया है। अनुस्वार का भरपूर प्रयोग है, पर विसर्ग कहीं भी नहीं है ।
हाथीगुम्फा अभिलेखको केवल भाषा और साहित्यिक मूल्य के लिये भारतवर्ष में प्रमुखता या प्रसिद्धि मिली नहीं है, इसे खारवेळ के राजत्व के प्रथम से लेकर तेरहवें वर्ष तक के धारा विवरणों के साथ सभी उन्नयन कार्यों के, यहां तक कि राष्ट्रीय विकास के लिये व्यय के विवरण भी कहा जाएगा प्रदत्त है, और उस जैसा एक समसामयिक अभिलेख भारत भर में दुर्लभ है। एक आदर्श महाराजा के दक्ष शासन में कलिंग इतिहास का एक विशेष कालखण्ड को उद्घोषित करनेवाला यह अभिलेख अप्रतिम है।
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