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है। "ब" वर्ण कहीं आयताकार तो कहीं वर्गाकार है। खारवेळ कालीन अभिलेखों में “ऐ" की विद्यमानता सब से अधिक महत्तपूर्ण है। क्यों कि भारत भर में अब तक आविष्कृत पूर्ववर्ती अभिलेखों में कहीं भी इस वर्ण का प्रयोग हुआ नहीं हैं।
इस परिच्छेद के अंतिम भाग में भाषा का अनुशीलन करते वणों को बारे में चर्चा करने का विचार है।
हमने कहा है कि अशोक के द्वारा धउली और जउगड़ में उत्कीर्णित अनुशासन की भाषा मागधी प्राकृत है। केवल कलिंग नहीं हिंदूकुश से मैशूर तक अशोक के जितने भी शिलालेख आविष्कृत हुए हैं सब की भाषा यही है। फिरभी भिन्न भिन्न क्षेत्रों के अभिलेखों में वहां की कथित भाषा के द्वारा मागधी प्राकृत अवश्य ही प्रभावित हुई है। विद्यानों ने कलिंग के अनुशासन के संदर्भ में भी यही कहा है। पर ईसापूर्व पहली सदी में खारवेळ कालीन हाथीगुम्फा अभिलेख में भाषा का स्तर और रूप उन्नत तथा विकशित है। वह कलिंग की मौलिक भाषा है, जो शास्त्रीय पालि भाषा की निकटवर्ती है। और इसे उडू प्राकृत के नाम से नामित किया गया है। इस भाषा पर आलोचना के पहले इस संदर्भ में विद्वानों के मतों पर समीक्षा आवश्यक है।
त्रिपिटक का संपादन करते समय पालि गवेषक हरमन ओल्डनवर्ग ने पालि की आदि भूमि पर विचार किया था। उनके द्वारा संकलित विनय पिटक के प्रथम भाग में महावग्ग ग्रंथ भी संपादित हुआ है और उसके मुखवंध में उन्होंने सटीक तर्कों से प्रतिपादित किया है कि पालि कलिंग की भाषा है और यदि यह भाषा भारत के किसी भी क्षेत्र से सिंहल में प्रसारित हुई थी तो वह क्षेत्र
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