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खारवेळ के समय की लिपियों को प्रदर्शित किया है। परंतु उन अभिलेखों का तुलनात्मक अध्ययन से यही पता लगता है कि राजगुरु जी के उस चित्र में प्रदर्शित अनेक वर्ण कल्पना-प्रसूत हैं। वे वर्ण उत्कीर्णित अभिलेखों में कहीं भी विद्यमान नही हैं। इस से लगता है, उनकी पुस्तक में प्रदर्शित खारवेळकालीन लिपि पाठकों को काफी विभ्रांत करती है।
हम यहां एक लिपि-पत्र तैयार करके अशोक और खारवेळकालीन वर्णमाला को दर्शाने का प्रयास कर रहे हैं। लिपि-पत्र के स्तंभ १ में अब प्रचलित नागरी लिपि, स्तंभ २ में अशोक-कालीन लिपि
और स्तंभ ३ में खारवेळ की हाथीगुम्फा लिपि प्रदर्शित हुई हैं। [चित्र क्र.१८]
हाथीगुम्फा अभिलेख में पांच स्वरवर्ण हैं (initial Vowels)और २६ व्यंजन वर्ण हैं। डॉ. साहू के अनुसार व्यंजन वर्णों की संख्या २८ है, यह सही नहीं है। अभिलेख में एक ही वर्ण के कहीं दो या ततोधिक. स्वरूप के वर्ण भी हैं। प्रथम अशोक-कालीन लिपि तो दूसरी उसी वर्ण की विकसित या परिवर्तित लिपि भी हो सकती है, जैसा कि हमने लिपि-पत्र में स्पष्ट कर दिया है। इसी से शायद भ्रम हुआ हो, उदाहरणों के जरिये लिपियों में परिवर्तन की सुचना से इस कथन की पुष्टी हो जाएगी।
"ख", "म" , और "व" , इन वर्गों के अशोक के समय की लिपियों में निम्नपार्श्व वुत्ताकार था जब कि खारवेळ के समय त्रिभुजाकार बना। उसी प्रकार “ल" और "ह" वणों के निम्न भाग कोणयुक्त हुआ है। अशोक-कालीन लिपि में कहीं 'ग" वर्ण का ऊर्ध्व भाग कोणयुक्त है जो खारवेळ-कालीन लिपि में नहीं
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