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खुल्ले नहि रखना, वगैरह प्रकारकी यतना यह ग्रंथ में बतलाइ है, वो शारीरिक और धार्मिक दोनोकों लाभके लिये है. जीससे अवश्य उपयोग रखना [ टट्टी - जंगल जाने वख्त लेजाने के. लये पानी का बरतन भी खुला न रहे, उनके लीये भी विवेकी पुरुषों ढंकने की योजना रखते है. ] बन्धुओं ! यह उत्तम जैन धर्म में बतलाइ हुई ( यतना) याने दया पालनेवालोंको शिघ्र मुक्ति देता है । जैन धर्मकी बलीहारी है ।
दोया हुआ दूध जैसे वने वैसे तात्कालिक गरम करके रखना चाहिए, नहि तो ठंडा दूध थोडे वख्त में बीगड जाने का संभव है | मुनि महाराजाओं भी ठंडा दूध व्होरते नहि । दूध छान गरम करना चाहिए [ गाय प्रमुखका वाल पीने छांनके में आ जाय तब सडेका भयंकर रोगका संभव होता है । ] दूधको बीना छाने नहि खाना. इतर धर्म में भी कहा है और जैन शास्त्रमें छानने के सात कपडे कहा है- १ मीठे पानीका, २ खारे पानीका ३ गरम पानीका ४ दूधका, ५ घीका, ६ तैलका और ७ आटा छानने का ।
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दूध बेचनेवाला दूधमें थोडा पानी डाले, वो बीगर छाना पानी जंतुवाला होता है ।
गायका, सका, बकरीका, और गाड़रीका यह ४ दूधको दूध विभाग में शास्त्रकारोंने गीना है. जीससे दूसरा जानवरोंका दूध खाने में दोष है, जल्दी अभक्ष्य हो जाता है । और रोग भी पैदा करता है ।
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