________________
कीतनेक बेचनेवाले वासी दूधका भेल करतें है। कलकत्ते तरफ रात को दूध खूब गरम करके, उनमें से मलाई नीकाल के उनमें सींगापुरसे आता हुआ आरारुट का आटेका मीश्रण करके सुबेमें ताजा कहकर-बेचते है। अपने तुच्छ स्वार्थके लीये बन्धुओं ! यह लोग क्या क्या नहि करतें है ? अर्थात वो बहुधा हरेक चीजमें दगा करतें है। उनका सूक्ष्म दृष्टिसें तपास करना और बनसके वहांतक उपयोग रखकर खरीद करना.
बीगडा हुआ और वासी दूधका दहि, दूधपाक, बासुदी, मलाई, मावा वगैरह पदार्थों भी अभक्ष्य हैं ।
दूध दहिं प्रमुख प्रवाहि पदार्थ के बेचने वाले लोगों वो चीजों के बरतन खुल्ले और अयतनासे कीतनीक वख्त रखतें है, उसे थोडा वख्त पर काठीयावाड में जुनागढ शहर में एक दूधका बेचने वालेका दुध ज्हां जहां दीया वहां वहां जीनोंने वो दूध पिया उन्होको कलाकोंके कलाको तक पेखाना, वमन, और अत्यंत बेचेनी सहन करनी पडी थी। तपास करते मालुम हूआ की वो दूधमें कोइ जीवकी लाळ वगैरह झहरी पदार्थ पड़ा हुआ होनेसें उन्होंको बीमारी ‘सहन करनी पड़ी थी। केइ वख्त सर्प वगैरह की लाळ (विष) गीरगई हो तो वो वापरनेसें मृत्यु हो जानेका संभव है। उसीहि लीये शास्त्रकारोंने दश जगह पर चंदरवा रखने का कहा है। एक मीनीट भी पानी, भोजन वगैरहका बरतन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org