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________________ कांजी-जो चीज कच्ची अथवा गरम की हुई छांछकी छाछ-पराश कहलाती है, वो कांजीका काल सोलह प्रहरका कहा हैं। दहि, छांछ और कांजी का सोळ प्रहर उत्कृष्ट काल कहा है, वो सोलह प्रहर में दोरात उल्लंघन न होनी चाहिए. उनके पहिले भी यदि वर्गादिक फीर जाय, तो वो चीअ उत्कृष्ट काळतक आभक्षय है। चलितरसमें जो जो कालमान बताया है, उसके उत्कृष्ट कालतक आचरणीय है उनके बाद क्वचित् निश्चयसें चलीत न हुई हो, तो भी वो व्यवहारसे अनाचरणीय है। कालमानका अर्थ ऐसा हुआ, की जो मर्यादा जो काळकी आचार्य महाराजाने बतलाइ है, उनके बाद वो चीज नहिंज बापर सकते, और कभी कालमान पहिले भी वर्ण, गंध, रस, स्पर्श बदलजाय तो भी ज्हां से अभक्ष्य समजमें आइ व्हांसें ही त्याग करने का खास ख्यालमें रखना। १९ दूध-चार प्रहर तक भक्ष्य है, लेकीन सांजका नीकाला हुआ दूध का उपयोग मध्यरात्रिके आगे होजाना चाहिये । कीतनीक वख्त ग्रीष्म ऋतु, दूध सख्त धूपसें या ज्यादा वख्त रहने से या उपयोग पूर्वक शुद्ध बरतनमें नहिं रखना वगैरह कीतनेक कारणसें बीगड जाता है। और कोइ वख्त दहिं के मुआफीक जमजाता है। उनको “दहिं हुआ" समजके वापरना नहि । कारण-वो दूधका वर्णादि पलटजाय उससे वो दूध हि अभक्ष्य है। कोइ वख्त दूध फट जाता है। तो भी उनका वर्णादिक फीरजानेसें अभक्ष्य मानना । Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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