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[ शहरों में दूध में - सपरेंटका दूधकी मीलावट होती है, और विलायती पावडरका भी भेल होता है । स्वच्छ दूध के लीए म्यु० प्रयत्न कर रही है । और दूसरी तर्फ हजारों वर्ष के अनुभवी भरवाडों के हाथमें से दूधका धंधा छुट जाय वैसी कोशिषें चलती हुई देखने में आती है. और विलायत की. पद्धति पर चलती डेरी कंपनींओं के हाथमें दूधका धंधा रखने की कोशिषे भी चल रही है । जीससे अपने देश के गरीब मनुष्यों को सस्ता और तुर्तमें दोहा हुआ ताजा दूध मीलना मुश्केल होनेका संभव हो सकता है, और धंधे बीगर होते ही, भोली, प्रामाणिक और आर्य प्रजाका एक भाग ३५ हजारो वर्षकी, और अपना धंधे में खूब पावरधी न्यात का विनाश से बडी हिंसाका भी संभव मनाता है । और खानपान की ऐसी महत्व की चीजों की मुश्केली के लीए अपनी प्रजाका आरोग्य भी जोखम में आजानेका संभव है । दूधवाले जनावरों को वचनेका अनेकविध प्रयास मुख्य तया डेरी के धंधेको किसाने के लीए है.
और मूल धंधार्थीओं के मार्ग में विघ्नों बीना डाले डेरीओं मजबूत नहीं हो सकती है । सादाई, कुशळता और महेनत वाले दुध सस्ता बेच सके याने हरिफाई में डेरीवालेको भी पहोंचने न देवे, जीससे उन्होंका दुध, घीकी परीक्षा करके अप्रमाणिकता और अज्ञानता उनको जनसमाज में हलका बना करके कायदे से विघ्न रचा रहे है। प्रजा का आरोग्यकी तो बात:
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