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________________ ९२ ही क्या ? लेकीन जहां से गौचरें खेडे गये और डबा दंडका कायदा शुरु हुआ, व्हांसे दुधवाले जानवरोंका पालनेवालेकी मुश्केलीकी शुरुआत हुई. उनमें से अप्रमाणिकता, वैर, विरोध, तुफान, खून खरावी होती है । और उनका बच्चोंको फरजीयात स्कूलके केलवणी लेनेकी फरज पडने से, उनको पशु रक्षण का ज्ञान वारसे से आता नहि, और केळवणी पूर्ण ले सके नहि, मानो ऊनका नुकसानका पार न गीना जाय ] २० घी - कडछा, काळ पूर्ण हो जानेसे, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श बदल जाने से अभक्ष्य हो जाता है। वीमें कीर्तनेक दगाखोर लोग चरबीका और बटाटा, रताळ प्रमुख कंदका मीलावट करते हैं । उनका अवश्य उपयोग रखना | बीना परीक्षा हरेक माल लेना नहि । [ वर्तमान में बीलायत से वेजीटेबल ath नामसे बनावटी घी आता है। वो सारे देशमें करीब करीब प्रख्यात हो गया है । और दुध देनेवाले जनावरों को पालने वाले लोगो में भी बहुत प्रचलित हुआ है । वो अच्छे घी के साथ मीला के बड़ी सिफारस से बेचते है | चाहीए जीतनी खात्री करने में आवे तो भी जहां घी की पदास के मुख्य स्थानोंमेंही ऐसी भेलसेल बहुधा होने लग रही है । अब क्या इलाज ? ज्यादा चेतते रहता वोहि । यह जमाने में केळवणी, अखाड़ा और आरोग्य वास्ते धमाल मच रही है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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