SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९३ लेकीन दूसरी औरसे ऐसे प्रजा के आरोग्य के नाश के बहुत तत्त्वों यह जमाने में खुबी से प्रचलित कीया है । उनके पर कोइका ध्यान नहि जाता है । जुटी बूम और खर्च चल रहा है । यह भी जमाने की बलीहारी है ] फिर जो लोग घी गरम करके बेचते है वो केई सात आठ या दो चार दिनका मक्खन एकट्ठा करके, गरम करते हैं, वो अभक्ष्य गीना जाता है । उनके वास्ते जीन्हो के घरपे गाय भैंस हो तो वो हि ज सच्चा उपयोग रख सकते है । थोडी छांछ के साथ या छांछ से अलग करते व ताबडतोब मक्खन चूले पर रख देना चाहिए | [ अपने घरपे इसरीति से तैयार कीया हुआ घी आग्रहपूर्वक वापरने वाले भी है । बहार गांव जाना पड़े तो भी यह घी साथमें ले जा कर उनका ही उपयोग करते है. नहि तो बीना वीसे चला लेवे | ऐसा कीतने ही श्रावक कुटुंब आज भी देखने में आते है ] परंतु कोइ श्रावक अपने घर अंतमुहूर्त्त से ज्यादा या कलाकों के कलाक वासी मक्खन न रक्खे [अन्तमुहूर्त्त - जघन्य नव समय से लगा के दो घडी में कुछ कम काल उनको अन्तर्मुहूर्त्त कहा है ] एक आंखका पलकारा लगा दे उतने वख्त में असंख्य समय हो जाता है ] उसी ही से मक्खन की बाबत में बहुत उपयोग रखना उचित है । अपने प्रमाद में अहाहा ! असंख्य जीवोंका नाश होता है । हे बन्धुओं ! श्री जिनसासन में हम लोग ऐसा अत्युत्तम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy