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________________ मोका प्राप्त कीया है की जीससे सुक्ष्म बातें का अनुभव होता है। अहो ! केवळी भगवंतो के अलावा दुसरा कौन कह सकता है ? अर्थात् त्रिकाळ भाव जीन्होंसे एक समयमें देखा है वो . प्रभु केवळज्ञान से ही यह सब प्रकाश सकते है। बन्धुओ! चलो अब अपना प्रमाद छोडके यह उत्तम मोकेको सहर्ष स्वीकार लीजीए, और “जीवदया प्रतिपाळ" यह नाम सार्थक करके मंगळमाळ पहनीए । [घरपे दुधवाले जनावरों रखने सिवाय घी, दुध स्वछच्छ मीलनेका दुसरा उपाय नहिं है। लेकीन जनावरों के लिये जो गौ-चर जमीन अलग रखने में आती थी वो शुभ प्रथा बंध होजाने से याने गौचर खेडे जाने से, और बांधने के लीए म्यु० तर्फसे महसुल वसुल करना होनेसे यह सादा और गरीब देशोंमें घरपर पशु रखना सर्व सामान्य प्रजाको परवडता नहीं है. म्गु० स्वच्छ घी-दूध के लिये प्रयास करती है, वो तो डिब्बेका घी दुधका भावि परदेशी व्यापार के लिये है। स्वच्छ, सस्ता और ताजा घी दूध मिलने का इससे संभव नहीं है] २१ बली-तुरत की बीयाइ हुई गाय तथा भेंस के दूध से बली बनाते है । गाय के जनने बाद १० दिनतक, भेंस के जनने के बाद १५ दिन तक, तथा. बकरी के जनने के पश्चात् ८ दिन दूध काममें लेना कल्पता नहीं है। तो फिर बली कैसे काममें आ सकती है ? अर्थात् यह खाने योग्य नहीं हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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