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छांट के रखा हो तो उसीही दिन वापरने में आवे. सूर्यास्त वाद वो काममें न आवे ।
छाछ छांट के सामको पकाया हुआ चावल रखने में भी बहोत उपयोग रखने की जरुर है। वो चांवल के सूर्यास्त होते पहले सब दाना अलग करना चाहिए, और जो वैसा न किया जावे, तो वो वासी होजावे, प्रत्येक दाना अलग अलग करना और उनके पर च्यारह अंगुल छाछ जरुर रखनी चाहिये, फिर वो छका कपाल में तीलक हो सके वैसी घट्ट अर्थात् पानी बीलकुल कम और छांछ ब बहुत हों वैसी चाहिए ] तथा वो चांगल जहांसे तैयार हुआ हो, व्हांसे काल आठ महरका गीनना, परंतु छांछ छोटी व्हांसे नहि । और सूर्यास्त होते पहिले हि उनकी पूर्वोक्त सब क्रिया कर लेनी चाहिए.
चातुसिमें तो इसरीतिसे चावल रखना हि योग्य नहिं है । तर तो वह है की जैसी चीजां परसे ममता उठालेनी चाहिये | क्यूंकी प्रमाद वशात् हम उपर बतलाया मुआफीककी व्यवस्था बहुधा रख सकते नहिं । और उसे वासीका दोष लगता है । वास्ते जरुर जीतनाहि पकाना, और वैसे करते ह अधिक हो जावे, तब अनुकंपा दान करना भी ठीक है ।
कीतनी जगह न्यातमें सांजका भात, मग वगैरह पकाई हुई रसोई अधिक हो गई हो, उनका कृपण स्वभावसे सदुपयोग कर नहि सकते, परंतु दूसरे दिन वो वासी रसोई नई रसोइ के
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