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रखने से, या ज्यादा जलादेने से, ज्यादा तळ डालने से, ज्यादा पका डालने से, दूणादेने से वगैरह तरह से भी ठीक नहि । पचने में भारी हो जाय, अपक्व, और दुष्पक्क न होना चाहिये, वैसी रसोइ खाने में अतिचार गीने गये है. ] फीर भी कलाइ रहित बरतन में दहीं, छाछ वगैरह खट्टे पदार्थों और दूसरी रसोइ दाल, शाक वगैरह भी कट जाते है, जीससे वो चीजोका वर्णादि फीरजानेसें वो खाने लायक रहता नहि है | वास्ते पीतल, तांबे के बीना कलाइके वरतन में वो चीजें जरा वख्त भी नहि रखना | कीतनीक बख्त थोडी कलाइ रही हों वैसे वरतनमें पकाई हुई चीज, या दहि-छांछ रखने सें भी वो कट जाती है, वास्ते वारंवार कलाइ करवानेका अवश्य उपयोग रखना उनमें प्रमाद या लोभवृत्ति रखने से उनका परिणाम व्याधि वगैरह खराब होता है ।
हरेक रसोई साधारण रीति से पकाने बाद ज्युं समय पसार होता रहे त्युं युं पचने में भी भारी होजाती है । इसीही मुआफी कुटा हुआ, पीसा हुआ मसाला, पीसा हुवा आटा मिठाइ वगैरह भी पचने में भारी हो जाती हैं । और दीखाया हुआ काल मानके बाद खराव चोंका प्रवेश होकर खाने लायक रहती नहि । याने सुक्ष्म जंतुओं भी उत्पन्न होजाने से अहिंसा दृष्टिसे भी अभक्ष्य बनता हैं. कलाइ कीया हुआ और कांसेका बरतन खानेका पदार्थ रखने के लीये
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