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________________ ८२ समजना. भजीये, कचौरी, लोचापूरी, मालपूआ वगरह नरमचीजें दूसरे दिन वाशी होती है. १५ चूरमे के लड्डु - जो मूठीये तळ के बनाया न हो, वो लड्डु दूसरे दिन वासी हो जावे. परंतु अच्छी तरह से तळा हुआ उत्तम मृठीये के बनाया हो, तो दूसरे तीसरे दिन खाने में हरजा नहि । खसखस, चूरमे के लड्डु और वैसे ही कीतनीक मिठाई पर डालने में आता है, वो वापरना युक्त नहि है । विरतिवंतीने तो अवश्य ख्याल रखना । [ यदि मूटिये ज्यादा अग्नि से तळा हुआभीतर कच्चा रह जाए, और उपर से जल्दी लाल हो जाय, तो वासी होना संभव है । वास्ते धीमे मधुर अग्नि से तळना. ] १६ रसोई - उन्हाले में सुबह पकाई हुई दाल, भात वगरह रसोई सख्त धूप से साम को पलट कर बेस्वाद [ चलितरस ] होजाने की संभावना है। तत्र अभक्ष्य हो जावे । रोटी, परौंठा वगैरह भी सम्माल से रख देना चाहिये । एकदम गरमागरम हो, वैसाही उनके बरतन में भर देना नहि. लेकीन थोड़ी देर पीछे भरना | वैसे ही गरम धूप में भी न रखना. और ढांकने में काळजी रखना चाहिये । रखने का स्थान भी स्वच्छ और वीगर जीवजंतु का एवं खुली हवा मीले बैसा होना चाहिये [ रसोइ मध्यम पाक से बनाना चाहिये। कड़क X खसखस - अभक्ष्य है वास्ते हलवाई की दुकान से मिठाइ खरीदने व उनका निर्णय किये बीगर विश्वास रखना नहि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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