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मिठाईका - काळमान कार्तिक शुद्ध १३ या १४ तक में जो मिठाइ बनीहो, उनका काळ १५ दिनका समझना । सब की वो मिठाइ वर्षाऋतु के काळमें बनी है । फाल्गुन शुद्ध १३ या १४ तक में जो मिठाइ बनाइ हो, उनका काळ २० बीस दिनका जानना । यद्यपि वो मिठाइ ठंडीकी ऋतु में बनाई है, लेकीन ग्रीष्म ऋतुमें वापरनी है, जीसे उनका उन्हाले के मुआफी काळ जानना, और आशाड शुद्ध १३ या १४ तक जो मिठाइ बनी हो उनका काळ पंदरह दिनका जानना । सबब की वो मिठाइ वर्षा ऋतु वापरनी है । इस लिये कम काळ समझना, परंतु विशेष नहि ।
इस तरह चलने से दोष नहि लगता, प्रतिज्ञा बहुत शुद्ध रहती है। कीतनीक मिठाइ तो दूसरे ही दिन या दो-चार दिन में भी वर्ण, गंध, रस स्पर्श आदि फीरजाने से अभक्ष्य होती है । वास्ते हरेक चीज अच्छी तरहसे देख कर, तपास कर, सुंघ कर खात्रीपूर्वक वापरनी उचित है ।
परदेशी मेढेंको या परदेशी पड़सुंदी के आटेकी मिठाइ अभक्ष्य है। जिनेश्वर भगवंतोने उपयोग और आज्ञा में धर्म कहा है | वास्ते ऐसी कई बाबत में उपयोग रखना बहुत जरुरी है । बन्धुओं ! प्रथम तो धर्म मार्ग में प्रवेश करते बख्त बहुत जीवों को वो कड़वी औषधि मुआफीक लगे, कोइ महा पुण्यशाळी लघु कर्मी प्राणीओ को ही धर्म प्रति अत्यंत उत्सुकता होती है ।
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