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उत्कृष्ट पंदरह दीन, गरमी की ऋतुमें बीसदीन, और ठंडी ऋतु में एक महिना तक भक्ष्य है, बाद में अभक्ष्य है।
हलवाइकी दुकान की मिठाह बहुधा वैसी उत्तम नहोने से उनका काळ कम समझना। और जो वर्ण, गंध, रस, स्पर्श फीर जावे तब काळ के पहिले भी अभक्ष्य होजाय । हलवाइ की दुकान की मिठाइ वापरने में अनेक दोष है। जीससे अपने घरपे बना के या बनवाके खाना वोही उत्तम है। दूसरी बात यह है की-बो पानी पीके झूठी कटोरी वोही बरतन में डाले, उसे असंख्य समुर्छिम जीव होते हैं, ऐसा पानी को मीठाई बनाने में डाले। जुना माल (मुखड़ी) बिगड़ी हुइ हो उनका चूरा वगरह नवी मिठाइ के साथ भी मीलाते है-आटा वगरह पुराना माल वापरने में आवे, पानी बीना छाने भी वापरें. रातको आरंभ करके बनावे, परदेशी मेंदा वगैरेह अभक्ष्य चीजें वापरें, घी बीलकुल हलका और कडसा भी वापरें, लकड़ी, चूला, वगैरेह साफ करे या नहि, उनके चूले पर चंदरवा कहांसे होवे ? ऐसी संमाल बिना धमाल से बनाते रहने से एकेंद्रिय से लगाके चौरेन्द्रिय और असंज्ञी-समुच्छिम पंचेन्द्रिय तक के अनेक जीवों की भयंकर हिंसा होती ही है । षटकाय का आरंभसमारंभ होता है। वगैरेह सबब से हलवाई की दुकान की मिठाइ या सेव, गांठीया, बुंदी, चवाणा आदि बहुधा अभक्ष्य है। चातुर्मास में तो हलवाई की दुकान की मीठाइ का अवश्य त्याग करना चाहिए ।
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