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________________ ७८ सुखाइ होवे, तो दुसरे दीन लेनेमें हरकत नहिं । अन्यथा शंकास्पद मानना | योग्य रस्ता तो यह है कि ताजेताजी रोज के रोज बनाके खाना उत्तम है । कभी उसमें झूठा पड़जावे या झूठे हाथ का स्पर्श हो जाय, उससे भी अभक्ष्य होती है । १२ संभारा- आटा या मेथी या पाणी डाल के बनाया हुआ संभारा दूसरे दीन वासी होता है । १३ पान - मीठाई गोलपापड़ी या पाक के लड्डु जो पाणी बीगर होता हैं, वो वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, फीरने से अभक्ष्य होता है । इसी लीये " पक्वान्न का काळमान खास तौर पर निश्चित नहीं कर सकते है, "विषेश काळ भी पहोंचे " वेसा शास्त्र में भी कहा है। जिसने गूड़की और घीकी बीगइ का त्याग कीया हो, और नीवीयाते की जीनको छुट हो, उनको वोही दीन की बनाइ हुइ गोलपापड़ी लेनेमें काम न आवे | दुसरे दीन ली जावे । क्यों की वोही दीन उनमें airs पणा रहता है, वास्ते नाही । तो भी उत्कृष्टसे सुखड़ी की काळ मुताबीक लेनेमे ठीक है. सबब की कीतने वख्त रसनेन्द्रिय में लुब्ध हो जानेसे उनका वर्ण गंधादिक पल्टा हुए, और मालूम नहो तो वो वापरने में दोष लगता हैं | वास्ते गोल पापड़ीका काल पक्वान्न के काल जीतना कहा है उस मुताबीक लेना वो ज्यादा ठीक है । मिठाइ अच्छी उत्तम प्रकार की बनाई हुई आगे पीछ में Jain Education International --- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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