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________________ वस्तुस्थिति चाहे जैसी हो, लेकीन अमुक काल मर्यादा नक्की अवश्य करनी चाहिए, नहिं तो कुच्छ भी व्यवस्थारहती नहीं। [दूसरे देशोमें चातुर्मासमें केरी पकती है, वहां के लीए भी शास्त्र में अलग उल्लेख मालूम नहि पड़ता है। याने सामान्य रीती से वो देशो में भी आर्द्रा के बाद में कैरी अभक्ष्य गीनने की अनुमान से शास्त्राज्ञा मालूम होती है । नहिं तो, पूर्वाचार्यों के विहार भारतवर्ष के हरेक विभाग में रहा हुआ है, यदि जो कुच्छ फेरफार होता तब वैसा उल्लेख हरेक स्थळों में करने में आता, लेकीन वैसा उल्लेख अबतक देखने में आया नहिं है। १० पापड़-भुंजा हुआ पापड़ का दूसरे दिन रूपान्तर होजाने से वासी हीता है, तैल या घी में तळा हुआ दूसरे दिन वापरने में आ सकते है। पापड़में लीलन-फूलन की बहुत समाल रखनी चाहिए. ११ चटनी-कोतमीर, फोदीने की चटनी करने में आती है, उनमें मुंजा हुआ चनेकी दाल या गांठीया (वड़ी) विगैरे डाल के बनाइ हुइ हो, तो वोही दिन भक्ष्य, दूसरे दिन वासी होने से अभक्ष्य है। खटाइ (लींबु कोठ प्रसुख) वाली कोतमीर फोदीने की पाणी बीगर की कोई भी अनाज डाला न हो, वैसी चटणी तीन दीन तक ली जावे। छंदते वक्त पाणी डाला हो, तो दुसरे दीन त्या अवश्य होवे । खटाइ बीगर की चटणी ताप में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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