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________________ ७३ की चासणी जो कच्ची होगी, तो फौरन वो बिगड जायगा। कच्ची चासणी का मुरब्बे में पंदरह-धीश दीन में-लीलन फूलन हो जाती है । अथात् बनाने में रखने में खूब उपयोग रखना चाहिये। बीजोरां, सफरजन, मोसंबी का मुरब्बाका उल्लेख कहीं शास्त्र में देखने में आते नहीं, इसी लिये वर्ण गंधादिक का परिवर्तन का उपयोग रखना चाहिये। __मुरब्बा, अचार वगरह खुल्ले रखने से बिगड जाते है और मीठाई, चवाणां [सेव, गांठीये-आदि] बिल्कुल बंध रखने से बिगड जाते हैं, और वर्षाऋतु में तो हवा लगने से भी लीलन-फूलन हो जाने से अभक्ष्य हो जाता है। इसी लिये जो चीज जिस रीति से रखने से अच्छी रह १ तिन तार की चासगी में मुरब्बा बनाने से ढोला गुड की माफक रहेगा और बिगडेगा नहीं. परंतु आंबला या तो सरफजन का मुरब्बा का रसा दवाई में लेते है, वो जुना पुरागा नहीं लेना चाहिये । शरबत-अनार और गुलाब का और भी कई तरह का होते है, वो अभक्ष्य है, क्योंकि उनकी चासगी बहुत कच्ची रखनी पडती है, और पानी खूब डालना पडता है। सीसा में पेक होने पर भी बोल अचार की तरह वो भी अभक्ष्य है। सीरका-चो भी अनेक हरी वनस्पति को बनता है, वो भी बोल अचार की तरह अभक्ष्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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