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अभक्ष्य है। वैसे ही मावा कच्चा रह गया हो यानी उसके अन्दर दूध का प्रवाही भाग रह गया हो तो उस मावे की मिठाई उसी दिन उपयोगमा ले कर पूरी करनी चाहिये । शकर डाला हुआ मावा जो बीकता है वो बासी होने से दूसरे दिन नहीं लेना चाहिये।
कितनेक दगाबाज मावे में बटेटां, रतालू, प्रमुख कंद मिलाकर उसका मिश्रण बनाकर बेचते हैं। इस लिये उसका ध्यान रखना चाहिये।
हे भव्यों! ऐसी मिठाईयां में प्रथम, मध्यमें, और अन्त में, कितनी हिंसा होती है ? तथा कितना दगा होत ? इसका ध्यान दीजिये। जलेबी, हलवा आदि मिठाई बीगर क्या आपकी उदर पूर्ति नहीं हो सकती? अथवा, अन्य भक्ष्य मिठाई नहीं मिलती? जिससे इन अभक्ष्य मिठाईका उपयोग किया जाय? उन वीररत्नों को धन्य है ! कि जो प्रारंभसे ही निष्पन्न हुई मिठाई के रसास्वादन से विमुख होकर उसका सर्वथा त्याग करते हैं। यह बात यथार्थ है कि एक रसइन्द्रिय के तुच्छ स्वाद के लिये असंख्याता जीवों की हानि होती हैं, तो भी भक्ष्याभक्ष्य की तर्फ ध्यान न देकर, अनादि काल की रफ्त के मुआफिक मुंह हिलाया ही करना, यह कितनी आश्चर्यजनक बात है ? ____ अपना मुख कब बंद रहेगा ? और अनंत सुखमें कब लयलीन होगा ? जब कि-एक रसनेन्द्रिय ही वश में न हुई
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