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में जो बनाये जाते हैं, वो भी अभक्ष्य है। क्योंकि यशोधर राजाने पूर्व जन्म में माता के दाक्षिण्यता से उड़दका कुकड़ा मारकर उसको मांस की भांति भक्षण किया था, इससे वारंवार कितने ही तिरियंच के भव करना पड़े ? व छेदन भेदन किया गया ? इस सबब यह जरुर वर्जनीय है। धर्मी मातापिताों जैसी बाबत पर लक्ष्य रख कर अपने बच्चों को भी समझाना चाहिये।
४ अम्रती-कलकत्ता तरफ बनाई जाती है। उसकी शकल जलेबी की भांति ही होती है। लेकिन अम्रती बनाने में आथा नहीं करना पड़ता, इससे यदि उपयोगपूर्वक बनाई गई हो, तो उसी दिन खाने में कोई हरजा नहीं। दूसरे दिन वह अभक्ष्य हो जाती है। इस हेतुसे कब बनाई गई है ? इसका निर्णय करके ही उपयोग में लेना चाहिये ।
५ दूध का मावा-जिस दिन बनाया हो उसी दिन भक्ष्य है । रातको अभक्ष्य हो जाता है । यदि उसको घीमें कीट्टीवनाकर तल लिया जाय तो रात को भी रह सकता है।
उसके पेंड़े, बरफी आदि मिठाई बनाना हो तो ताजे मावे से कीट्टी बनाकर फोरन बना लेना चाहिये और चार पांच दिन में उस मिठाई को समाप्त कर देना चाहिये। ज्यादा दिन रखने से खट्टी हो जाने की तथा लीलन-फूलन जम जानेकी संभावना है । और इसी प्रकार बहुत से व्यापारी की दुकान पर की मिठाई पर लीलन-फूलन देखने में आती है। जैसे मावे की मिठाई सर्वथा
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