SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६९ | कर उसमें से सच्च निकाल कर उसे बनाते हैं । इससे उसमें असंख्य जीव उत्पन्न होते हैं । इस हेतु से उसका सर्वथा त्याग करना चाहिये । दुधी का हलवा जिस दीन बना हुआ उसी दीन भक्ष्य दुसरे दीन अभक्ष्य हो जाते है । जलेबी, हलवा, या जो चीज अत्यंत आरंभ से बनाइ जाती है इनका अवश्य त्याग करना चाहीए । , बम्बई में हलवा बहुत प्रसिद्ध होने से वहां से जो लोग अपने वतन जाते है वह साथ ले जाते हैं । परन्तु भाईयों ! अनेक इंद्रियादिक जीवों की हिंसा करने वाला पदार्थ को खाने का उपयोग में लाने से अपनी आत्मा को कठिन फल चखने पड़ेंगे। उस वख्त माता-पिता, भाई-बहन, स्वजन, कुटुम्बी या मित्र अथवा स्त्री कोई उस महादुक्ख में से निवारण करने के लिये नहीं आयेंगे, न उस वख्त होते हुए दुक्ख में से [ निवारण करने के लिये ] थोड़ा बहुत आप भी स्वीकार करेंगे । भोक्ता अपनी आत्मा ही बनेगा । इस लिये इस प्रकार के अभक्ष्य पदार्थ बिलकुल उपयोग में न लेना चाहिये | वैसे ही ज्ञाति में, रिश्तेदारी में अथवा किसी दूसरे के वहां भोजनके लीए जाते वख्त जैसी अभक्ष्य चीजों को विष समजकर उसको स्पर्श भी न करना चाहिये । शकर आदि के खिलौने जानवर के Jain Education International के रूप For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy