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टिक नहीं सकती। इससे संग्रह भी करना होता है-इस भारतवर्षम से जब अनाज परदेश बहुत नहीं जाता था, तब तक प्रत्येक कुटुंब हरेक प्रकार के धान्य पृथक् पृथक् रीति से संग्रह करके कालजी पूर्वक रक्षण करते थे। यह सब अनुभवीओंसें जान लेना चाहीए.]
राखमें भारना, पारा देना, तथा सार संभाल लेना चाहिये । उसमें भी वर्षाऋतु में खासकर के प्रत्येक वस्तु में जीवों की उत्पत्ति होनेका संभव है। इससे विशेष समाल कर रखना चाहिये।
यही सब कार्यों में ओरतोंने विवेक तथा चतुराईपूर्वक अपना फर्ज समझ उपयोग रखना चाहिये। यदि बन सके, तो दूसरे को पीसने के लिये भी न दे। कारण पीसने वाले को तो मजदूरी करना है । वो चाहे घंटी साफ़ करे या नहीं, स्वच्छता की दृष्टि से भी दुसरी कीतनी बातो का भी उपयोग कैसा रख सके ? घंटी के ऊपर चन्द्रवा आदि हो या न हो [प्रायः वे धर्म से परिचित न होने के कारण वे शुद्धि, यतना आदि का उपयोग कैसे रख सके ? ] तथा वे तिथि के मी दिन पीसेंगे। और उसमें भेल भी कर देवे, [बहुत लोग "हाथ से पीसेंगे" एसा कह कर पेसे ले लेते हैं, और यन्त्र-चक्की में पिसवा कर ठंडा कर के आटा दे जाते हैं।] कीन्तु यह यंत्र के जमाने में गरीब भी चकी के द्वारा आटा
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