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६३.
आसो, कार्तिक में चार दिन । अगहन, पोस में तीन दिन । माह, फाल्गुण में पांच प्रहर । चैत्र, वैशाख में चार प्रहर । जेष्ठ, आषाड़ में तीन प्रहर । पश्चात् अचित्त होता है ।
जिस दिन पीसा हो वो दिन छाना हो तो सब ऋतुओं में, उसी दिन अचित्त है। और दो घडी पश्चात् कार्यवश मुनिराज भी उपयोग में ले सकते है ।
सिद्धान्त में आटेका समय निश्चित देखने में नहीं आता, परन्तु अचित्त आटे में कटुता और वर्ण, गंध, रस, स्पर्श पलट जाय, तब अभक्ष्य है। तथा जीवकी उत्पत्ति मालूम पडे, तो वह आटा छानकर भी नहीं खा सकते । याने वो अभक्ष्य मानना ।
और वर्षा ऋतु में आटे को प्रत्येक दिन में दो वक्त और शियाले तथा उन्हाले में एक वक्त छानना । कारण कि उसे न छानने से उस जाले पड़ जाते हैं, और वह शीघ्रही बिगड़ जाता है। तथा हरएक समय काम में लाते समय अवश्य छानना चाहिये । जीससे जीवो की यतना हो सके । [यान्त्रिक चक्की द्वारा पिसा हुआ आटा गरम होता है। इससे उसको एकदम विना ठंडा होने के पूर्व ही भरदेने से भाफ के कारण वराळ से पानी छूटता है इससे आटा बठरा होजाता है । और वह बदबू डबे में दबा देता है। इससे वह अभक्ष्य होता है । इस कारण उसे ठंड़ा होने के पश्चात् भरना चाहिये । यन्त्र चक्की द्वारा पिसे आटे का भक्ष्य रहने का समय बहुत कम है । यन्त्र चक्की द्वारा पिसा
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