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, खट्टे ढोकले का आथा करते है. मगर उपर बताये माफिक छाछ गरम कर के बनाना चाहिये. स्वजन, संबन्धी, अन्य दर्शनीय, या अन्य जाति की रसोई वगैरा में भोजन करने का मोका आवे, तो विदल का अच्छी तरह उपयोग रखना चाहिये. नहीं तो चलते रास्ते दोष लग जाने का संभव है.
और कढ़ी, राईता, वगैरा बनाया हुवा हो, तो पहिले शंका का निवारण करना चाहिये की छाछ को गरम करने के बाद (विदल) बेसन डाला गया था? या नहीं ? इस तरह पुरी बराबर जांच करने के बाद खाना चाहिये । ... घर पर भी राईता, कढ़ी बनाया हो तो विरतिवंत श्रावको कों बीना खात्री किये नहीं खाना चाहिये । हाल में बहुत सी जगह (गोरस) दही, छाछ, अच्छी तरह गरम करने की प्रवृत्ति देखने में नहीं आती, वास्ते विरतिवंत मनुष्यों को बरावर खात्री करना ही बेहतर है, अगर किसी जगह ऐसा पाया जावे, तो भोजन करने को नहीं जाना चाहिये।
- आशा है कि-विरतिवंत मनुष्य तथा अन्य श्रावक श्रावीकाएं अब से उपर बतलाये मुताबिक, (गोरस) दूध, दही, छाछ, गरम करने की प्रवृत्ति में उद्यमवंत रहेंगे. द्विदलके साथ कच्चा गोरस मिलने पर फोरन दोइंद्रिय जीव उत्पन्न होते है, वो आगमगम्य है । इसका वृत्तान्त आगे मक्खन के. संबन्ध में बतला चूके है। इस लिये शंका नहीं रखना व
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