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अभक्ष्य का अवश्य त्याग करना चाहिये । " भोजन करते वक्त खुद के घर पर विदल नहीं खाउंगा, और अन्य के घर पर खास उपयोग रखूंगा. " ऐसा नियम असमर्थ (कायर) मनुष्यों के लिये है. किसी जगह भोजन करना लेकिन साथ २ इसके अभक्ष्य वस्तुएं खाने का आगार नहीं रखना चाहिये । आगार रखे तो समझना चाहिये कि, "लड्डुभी खाना, और मुक्ति में भी जाना" इस मुआफीक हुवा | लेकिन बंधुओं और बहिनीयां ! ऐसा करने से मोक्ष पद प्राप्त नहीं होता. मगर इसके लिये आत्म वीर्य की शक्ति रखकर त्रिकरण योग से ऐसी चीजों का त्याग किया जाय तो प्राप्त हो सकता है. अलावा इस शरीर के साथ माता, पिता, भाई, भगीनी के मोह का जब तक संबन्ध रक्खा जाय तब तक चार गति के चक्र में से निकलना बहुत मुश्किल है. इस शरीर का तो अवश्य विनाश होने का स्वभाव है. इस लिये हे वीर पुत्रो ! शरीर पर से ममता भाव हटाकर मोह रूपी रात्रि का त्याग कर व निद्रा को दूर कर जाग्रत होना चाहिये. व पाये हुवे मनुष्य जन्म को सफल करना चाहिये ।
" आज करेंगे, कल करेंगे" इस तरह विचार करते २. यमराज के चक्कर में आ जाना पडेगा । जैसे कि:" आई अचानक काल तोपची, ग्रहेगो ज्युं नाहर बकरीरी. "
इसका अर्थ यह है कि - "जब काल रूपी दूत गिरफ्तार
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