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________________ अच्छी तरह गरम किया जाय, तो छाछ बगैरा नहीं फटती. (शास्त्रो में गरम किये हुवे दूध के विषय में श्री जिनदत्तसूरिश्वरजी महाराज विरचित संदेह दोलावली में नीचे लिखे मुताबिक गाथा कहते है:"उकालियंमि तके विदलक्खेवे वि नत्थि तद्दोसो." इत्यादि उपर लिखी हुई गाथा का अर्थ वाचनाचार्य श्रीप्रबोधचन्द्रजी विरचिन विधि रत्न करन्डिका नामे छोटी टीका में इस तरह कहते है. ___ "उत्कालितेऽग्निना-अत्युष्णीकृते, तक्रे गोरसे, उपलक्षणत्वाद्दध्यादौ च, द्विदलं-मुगादि, तस्य क्षेपः-द्विदलक्षेपः, तस्मिन्नपि सति किं पुनः ? द्विदल-भक्षणानन्तरं प्रलेहादिपाने, इत्यपेरर्थः, नास्ति तद्दोषो द्विदलदोषो जीवविराधनारूपः ।) इत्यादि इस पाठ से साफ जाहिर होता है कि-" अग्निद्वारा गरम किया हुवा दूध छाछ उपलक्षण से दही, आदि शब्द से दूध में द्विदल पड़ने से विदल का दोष नहीं लगता है, वास्ते उपर बताये हुवे पाठ के मुताबिक अच्छा गरम करना चाहिये, जिस से विदल का दोष न लगने पावें। आज कल के समय में बहुत से लोग बीना अनुभव से जैसामरजी में आवे वैसा करते है. मगर वो अयोग्य है. इस लिये पूर्वोक्त विधि के अनुसार गरम किये हुवे बाद चने का आटा, मेथी प्रमुख द्विदल मिलाने में आवे, तो दोष नहीं लगता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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