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________________ ४५ न्तकाय ) बेंगन, खसखस, राजगरा, वगैरह. यानी इनमें जितने बीज होते है, उतनेही पर्याप्त जीव है. इसलिये त्याग करना चाहिये । ऐसे फल खाने में कम आते है मगर हिंसा ज्यादा होती है. इसलिये ज्यादा वीज वाले फल का बीलकुल त्याग करना चाहिये. [ ज्यादा बीज वाले फल खाने से पित्त प्रमुख रोग होते है. और जिनेश्वर भगवान की आज्ञा के विरुद्ध है. कितनेक साधु मुनिराजों का मत है की दाड़म, और टिंडोरा, अभक्ष्य नहीं है । कच्चे टिमायें को भी वेंगन की जाती समझकर (बहुवीज ) ज्यादा बीजका शाक होने से त्याग करदेना चाहिये । १९ संधान - शब्द से बोलका अचार समझना चाहिये.. जिसको ज्यादा समय तक रखते है । वोह बहुतसी वनस्पतियां का होता है: जैसे कि:- आवळ, पाडल, नींबू, केरी, गुंदा, केरड़ा, करमदा, काकडी, डाला, गीले मरीय, खडबुच, मिर्ची वगैरह का अचार तीन दिन बाद अभक्ष्य हो जाता है। यह सब तरह के अचार तुच्छ और त्रसजीव की खान है । कंदमूल [ अदरक, आलू, हल्दी, गरमर, गाजर, कुंवार, और नागरमोथा, यह चीजें अनन्तकाय है । उपर बतलाई हुई चीजें तथा पंचुंबर, बहुवीज बील्लां - बील्ली, हरा वांस वगैरा का अचार बिलकुल नहीं बनाना चाहिये क्योंकि ये चीजें अभक्ष्य है. इनमें जरूर शुरू से चोथे दिन दोइंद्रिय जीव उत्पन्न होते है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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