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________________ ३९ तक चौविहार करते रहें । उनको पन्द्रह उपवास का फल मिलता है. और वोहि भव्य आत्मा मोक्षका अधिकारी होता है. इनमें बिल्कुल संदेह नहीं है । अगर जो मनुष्य चौविहार करने को असमर्थ हो, उनको तिविहार दुविहार जरूर करना चाहिये । जैन शास्त्रो के अलावा = दुसरे मजहब के शास्त्रो में भी रात्रि भोजनमें जल रुधिर व अन्न मांस के समान है । एक इटालीयन कविने नीचे लिखे मुताबिक कहा है: २ पांच बजे उठना, और नव बजे जिमना पांच बजे व्यालु, और नव बजे सोना. इससे नेवुं और नव वरस जीया जाता है. १ श्राद्ध विधिः - " ( उत्सर्ग मार्ग सें ) दिन होते ही - दिवस चरिम पच्चक्खाण कर लेना चाहिये, ऐसा कहा है." योग शास्त्रादिक में दिवस चरिम शब्दका अर्थ - " अहोरात्र का बाकी रहा हुवा समय." ऐसा बतलाया है, इसलिये रातको दिवस चरिम नहीं होता. एसा एकान्त नही है । लेकिन बराबर ख्याल रखकर दिन को हि पच्चक्खाण कर लेना उचित है । चौविहार, तिविहार, दुविहार, पच्चकखाण लेने का अभ्यास हर एक जैन भाईयों को बचपन से ही होना चाहिये । Jain Education International · २ इस देश में मजदूर वर्ग में सामान्य रूपसे तीन वक्त भोजन करते है. और शिष्ट वर्ग में आम तोर से बालको के सिवाय दो वक्त भोजन करने का रिवाज था. हाल में चाय का प्रचार होने के बाद प्रातः काल में कुछ खाने का रिवाज होगया है. नहीं तो बिना कारण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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