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________________ बहुतही पीड़ा उत्पन्न करते है। इत्यादिक रात्रिभोजन सम्बन्धी बहुत दोष है। कितनेक पशु, पंखी भी रातको भोजन नहीं करते। वास्ते यह बात भी देखकर रात्रिभोजन का त्याग करना चाहिये। ' दिन होते हुवे अंधेरे में या छोटे बरतन में भोजन करना भी उपर बताये मुताबीक दोषित है। दिन में बनाया हुवा भोजन रातको खावें. रातका बनाया हुवा रातको खावें. रातको बनाया हुवा दिन को खायें, यह त्रीभगी अशुद्ध है । फक्त दिन को यतना पूर्वक बनाया हुवा भोजन दिनमें खावे, वो ही शुद्ध है. मुख्यरीतिसे सूर्यास्त पहिले व सूर्योदय बाद दो घडी तक आहारका त्याग करना चाहिये । तथा ( लगभग वेलाऐं ) याने सूर्य होते हुवे सूर्यअस्ताचल की बहुतही नजदीक आ जाय याने थोडा स्वरूपमें नजर आबे या न आवे, सूर्य होगा या नहीं ? ऐसा मालूम हो, उस वक्त से भोजन का त्याग करना चाहिए। चौविहार के नियम वाले महानुभावों को सूर्यास्त के दस मिनीट पहिले भोजन करना चाहिये । तिविहार दुविहार के नियमवालों को भी उपर बताये मुताबिक अमल करना चाहिये, नहीं तो दोष लगने का संभव है। शास्त्रकारोने फरमाया है कि-"जो मनुष्य लगातार एक मारा २ रात को भोजन करते वक्त पानी से भरा हुआ थाळ पास में रखने से जितने जंतु पडे हुवे देखने में आवे, उतने का मांसाहार होता हुवा प्रत्यक्ष जानकर रात्रि भोजन का त्याग अवश्य करना चाहिये. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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