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___ इनका अर्थ यह है कि पांच बजे उठना व नौ बजे भोजन करना. पांच बजे शामको व्यालु करना और नौ बजे
कोई नही खाते, सिर्फ दस बजे भोजन करते और शाम को ऋतु के मुताबिक पांच बजे के लगभग खाने का रिवाज था । दिन को सूर्य के प्रकाश से जठराग्नि तेज रहती है. इस लिये सुबह दस बजे का किया हुवा भोजन ७-८ कलाक में पच जाता है, व शाम को किया हुवा भोजन रात्रि में लगभग १६ कलाक की मदद से पच जाता है. यानी दूसरे दफा भुख अच्छी लगती थी। जब ही भोजन करने में आता था। मारवाड़ प्रदेश में हाल में भी यह रिवाज देखने में आता है। लेकिन, इस समय ... में टाईम का ख्याल कोई नहीं करते. यानी सुबह, दो प्रहर, शाम, रात्रि
को नही देखते हुवे खा लेते है, जिससे बहुत को पित्त की बिमारी कायम रहती है. और उनका चेहरा पीला-फीका देखने में आता है । खून में सफेद-पीले रजकण ज्यादा होते व लाल कम होते है. अगर इस तरह अनियत वख्त पर भोजन होते रहे तो फायदा नहि करते है। महेनती मनुष्य के अलावा दो टाईम ही भोजन करने का रिवाज रक्खे तो तन्दुरस्त रह सकते है, ऐसा हमारा ख्याल है। महेनती लोग भी इस नियम पर चले तो उनक भी अनेक लाभ हो सकते है। और उनको यह बात समझ में आ सकती है। मगर उनको यह बात आज तक नहीं बतलाई गई, इस लिये इस लाभ को नहीं समझ सकते। और जरूरत होने पर दो वक्त से ज्यादा भी भोजन कर सकते है. व साथ २. इसके आरोग्यता भी रह सकती
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